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कर्मकांड
वेद शास्त्र के द्वारा निर्दिष्ट ऐसा आधयात्मिक कार्य जिसके करने से मनुष्य धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष यानि चतुर्विध पुरुषार्थको प्राप्त करता है और अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाता है | क्युकी यह जो मानव तन है बड़ा ही दुर्लभ है और इसको प्राप्त करने के बाद भी प्राणी यदि न जगा तोह जीवन निरर्थक है-रामचरित मानसकार गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज भी कहते है बड़े भाग मानुष तन पावा |सुर दुर्लभ सदग्रंथही गावा || यह जो मनुष्य सरीर है बड़े ही भाग्य से मिलता है और यहाँ तक कि देवताओं को भी दुर्लभ है-ऐसा सद्ग्रंथो में वर्णन है| अब आइये महत्त्वपूर्ण विषय पर इस सरीर को अर्थात तन और मनन को स्वस्थ कैसे रखना है क्युकी परमात्मा के द्वारा दिया गया यह अतिसुन्दर उपहार है और इसको व्यवस्थ रखना हर शरीर दारी का परम कर्त्तव्य है | तोह इसको व्यवस्तिथ रखने का उपाय वेदादि में है|और वेद ेव पुराण में निर्दिष्ट पथ का प्रदर्शन ाचार्य हे कर सकते है| अब प्रश्न उठता है की वर्त्तमान में जो समस्या है उसका समाधान तोह आप कर देंगे लेकिन भविष्य यानि आनेवाले समाये की जो समस्या है उससे कैसे मुक्ति मिलेगी तोह इसमें घबराने की बात नही है हमारे ऋषियों ने तमाम दुखों से निवृति के लिए ज्योतिष शास्त्र जैसे उपकारक ग्रन्थ की रचना की है| जिसके द्वारा हम अपना आनेवाला हर पल सुख से व्यतीत कर सकते है और इतना ही नहीं ज्योतिष के द्वारा हम अपने प्रतिकूल ग्रहों के बारे में जानकर कर्मकांड केद्वारा उन्हें भी अपने आचार्यों के द्वारा किये गए अनुष्ठान इत्यादि के प्रभाव से प्रसननकर मनोभिलाषित फल को प्राप्त कर सकते है|