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वेद की उत्पत्ति
वेद की उत्पत्ति
वेद किसी व्यक्ति विशेष की रचना नहीं |है हमारे सनातन धर्म में वेद को अपौरुषेय कहा गया है| जिसका अर्थ है होता है की वो किसी पुरुष के द्वारा नहीं रचा गया है बल्कि भगवन की कृपा ेव स्वयं वेदव्यास जी के तप का प्रभाव है की वेदों के मंत्र का दर्शन उन्हें हुआ | इसलिए भी कहा गया है-ऋषि वेद के कर्ता नहीं ऋषियो मंत्रो के द्रष्टा है| वेदों का कर्म है- सर्वप्रथम ऋग्वेद ,यजुर्वेद, सामवेद, ेव अथर्वेद अब देखिये हम एहब भी जानेंगे की किस वेद के विद्वान् की संज्ञा क्या है| तो ऋग्वेद में निष्णात विद्वान् को होता है ेव यजुर्वेद के विद्वान् को अध्वर्यु, सामवेद के विद्वान् को ब्रह्मा कहा जाता है| अब हमें जानना है इन् वेदों में है क्या और इनसे मानव जाती को क्या लाभ होता है -ऋग्वेद में ज्ञानकाण्ड, यजुर्वेद में कर्मकांड ेव सामवेद में उपासना कांड का वर्णन है| इन तीनो वेदो को वेदत्रयी भी कहा जाता है | अब प्रशन उठता है की अर्थवेद को वेदत्रयी में परिगणित क्यों नहीं किया गया है तो विद्वानों का मत है कि इसमें अभिचारदी का वर्णन है ेव तीनो विषयों का एक साथ समावेश होने कारण इसे वेदत्रयी में सम्मिलित नहीं किया गया – है अब आइये मैं विषय में वेदो से हमें लाभ क्या होता वेद हमें देते क्या है , तो वेद का अर्थ क़ि होता है ज्ञान और हमारे मानव जीवन में ज्ञान का बड़ा ही महत्व होता है ज्ञान हींन मनुष्य पशुवत आचरण करने लगता है | तो वेद हमें कर्त्तव्य का मार्ग प्रदर्शन करते है हमे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसका वेद वृद्ध रूप से वर्णन है जैसे वेद हे हमे बताते है मातृदेवो भव | पतृदेवो भव | आचार्य देवो भव इत्यादि तो मानव को कैसे आचरण करना है | मानव जीवन का क्या लक्षय है | मानव सुखी कैसे होगा इन् सबका समाधान हमारे वेदों में है जैसे आज ग्रहगोचर के प्रभाव से ेव अपने कर्म जन्य दुखो से हम नाना प्रकार के कष्टों का सामना करते है यहाँ तक कि कभी कभी निर्णय नहीं ले पाते की अब हम क्या करे ऐसे परिस्थिति में हमें वेद के मंत्रो के जप से उनके परायण ेव नाना प्रकार के अनुष्ठान से ही लाभ होता है और हम आधी व्याधि ेव कलेशो नृवृन्त होते है| ेव तीनों प्रकार के तापों से मुक्त होकर सुख को प्राप्त करते है |