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मकर संक्रांति व्रत
मकर संक्रांति व्रत
संक्रांति व्रत का विधान ज्योतिष शास्त्र में वृहद् रूप से दिया है| सूर्य जिस राशि पर स्थित हो उसे छोड़कर जब दूसरी राशि मे प्रवेश करे उस समय का नाम संक्रांति है| ऐसे बारह संक्रांतियों में मकरदि छह राशियों के भोग काल में दक्षिणायन होता है| यह दो अयन होता है सामान्य मत से दिन में का उत्तरार्ध तथा अर्घ रात्रि के बाद हो तोह आनेवाले दिन में पुरणाद्र पूर्णय काल के होते है| जैसे इस वर्ष महावीर पन्चाडा के अनुसार १५-१-२०१९ को सोमवार की रात्रि में २:०९ मिनट पर मकर संक्रांति हो रही है तथा साथ ही उसी दिन सूर्य उत्तरायण होते है तोह अगले दिन मंगलवार को पूर्णय काल में गंगादि देव नदियों में स्नान करके जप तथा दान करे उसके बाद वेदी या चौकीपर लाल कपडा बिछा कर चावल से अष्टदल निर्माण करे ुसस्पर सूर्यनारायण की सोने की मूर्ति स्थापन करके उनका पाचोपचार स्नान गंध पुस्पा धुप दीप भुक्त व्रत करे तोह सब प्रकार के पापों का झये होता है सब सब प्रकारकी आधी व्याधियों का निवारण तथा सब प्रक्कर की हीनता अथवा संकोच का निपात होता है तथा प्रत्येक प्रकार की सुख संपत्ति संतान और सहानुभूति की वृद्धि होता है|