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शुक्रवार व्रत का विधान
शुक्रवार व्रत का विदान भविष्योत्तरपुराण में वृहद् रूप से दिया है| शुक्रवार के दिन जयस्था नक्षत्र का योग होने पर उस दिन शुक्रवार व्रत आरम्भ करना चाहिए , शुक्रवार व्रत करने वाले स्त्री या पुरुष को चाहिए की उस दिन स्नान आड़ कर के पश्चात श्वेत वस्त्र धारण करे तथा पवित्र स्थान पर कुशादी पवित्र आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठ कर आचमन प्राणाय करने के बाद संकल्प करे- मम जनम कुण्डल्या गोचर च शुक्र जनित दोष परिहारार्थ भवतिक सुख प्राप्त्यर्थ तथा च शुक्र देवता सुप्रसन्नार्थ शुक्र व्रत अह करिष्य| इस प्रकार संकल्प करने के बाद शुक्र भगवान् की सोने की बनी मूर्ति को चांदी या कांसे के पात्र में स्थापित करके सुष्वैत गंध पुष्पादि से पूजन करे| पूजन करने के बाद नक्त व्रत करे नकट व्रत का अर्थ होता है की दिन में उपवास रहे और रात्रि में भोजन करे| इस प्रकार से सात शुक्रवार व्रत करने के बाद शुक्र के नाम मंत्र से हवन करे ,उसके बाद ब्राह्मणों को खीर का भोजन करा कर मूर्तिसहित पूजन सामग्री का दान करे और नक्त व्रत करके व्रत का समापन करे तो शुक्र जनित संपूर्ण व्याघिया शांत होकर सब प्रकार का भौतिक सुख प्राप्त होता है|