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कुम्भ का महत्त्व
कुम्भ का महत्त्व
कुम्भ महापर्वका महत्त्व स्कंदपुराण में वृहद् रूप से दिया है| इस अखंड भारतवर्ष में प्रत्येक पुण्य पर्व किसी काल विशेष में ही मनाया जाता है| और वो पर्व अपने महत्त्व को प्रगट करता है| भारतवर्ष की इस वैदिक परंपरा में कोई भी कार्य बिना मुहूर्त के संपन्न नहीं होते| जैसे कुम्भ पर्व भी एक ऐसा पर्वविशेष है जिसमेभी तिथि , गृह, मास आदि का अत्यंत पवित्र योग होता है| कुम्भपर्व का योग सूर्य , चन्द्रमा, गुरु ेव शनि के सम्बंद से सुनिश्चित होता है| स्कंद पुराण में लिखा गया है कि समुद्र मंथन से जो अमृत पूर्ण कुम्भ से निकलश अमृत कुंभ को लेकर देवताओ एव दैतयो में संघर्ष हुआ उस समय चन्द्रमा ने उस अमृत कुंभ से अमृत के छलके से रक्षा की और सूर्य ने उस अमृत कुम्भ के टूटने से रक्षा की| देवगुरु बृहस्पति ने दैत्यों से तथा शनि ने इंद्रपुत्र जयन्त से रक्षा की इसी लिए उस देव दैत्य कलह में जिन जिन स्थानों में जैसे हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक, जिस जिस दिन अमृत कुम्भ छलका है उन्ही उन्हीं स्थलों में उन्हीं तिथियों में कुम्भ पर्व होता है| इन् देव दैत्यों का युद्ध शुद्धकुम्भ कोलेकर १२ दिन तक १२ स्थानों में चला और १२ स्थलों में सुधा कुंभ से अमृत छलका जिनमे हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक चार स्थान मृत्युलोक में है शेष चार स्थान स्वर्गलोक में है तथा चार स्थान पाताल लोक में है| हमलोगो के बारह वर्ष के मान को देवताओं का बारह दिन होता है इसी लिए १२ वे वर्श हे सामान्यता प्रत्येक स्थान में कुम्भ की स्तिथि बनती है-
आइये अब हम जाने कुम्भ पर्व के ज्योतिष आधार
- तो मेष राशि में सूर्य तथा चन्द्रमा, कुम्भ राशि में गुरु तथा वैशाख मास अमावस्या तिथि को हरिद्वार में प्रथम कुम्भ पर्व होता है|
- मकर राशि में सूर्य एव चन्द्रमा , वृष राशि में गुरु तथा माघमास अमावस्या के दिन कुम्भ पर्व का योग उज्जैन में बनता है|
- उसी प्रकार सिंह राशि में हे सूर्य, चन्द्रमा एव गुरु के रहने पर भाद्रपद अमावस्या तथा (दक्षिण भारत के अनुसार श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को) नासिक में कुंभ का योग बनता है|
- मेष राशि सूर्य एव चन्द्रमा, सिंह राशि में वृहस्पति के रहने पर वैशाख में अमावस्या के दिन प्रयाग में कुम्भपर्व होता है|
आइये अब हम जाने तीर्थराज प्रयाग में इस वर्ष लगने वाले अर्घ कुंभ के विषय में|
प्रयाग राज में अर्घ कुम्भ का समय पूर्ण कुम्भ से ठीक छठवे वर्ष में होता है- अब हमें यह भी जानना है की किस ग्रह क योग में अर्घ कुम्भ होता है|
मकरे च खो चन्द्रे वृश्चके संसिथये गुरौ||
अर्थात जब मकर राशि में सूर्य एव चन्द्रमा तथा वृश्चिक राशि में गुरु होते है तब प्रयाग में माघ मास में अमावस्या के दिन अर्घ कुम्भ पर्व का समय होता है| इस तीर्थराज प्रयाग में मकर संक्रांति मास के अमावस्या के दिन कुम्भ पर्व पर स्नान, दान, जप करने वाले भक्तों को अक्षय पूर्णय तथा भौतिक सभी प्रकार के सुख प्राप्त होता है तथा उन्हें अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है|
आइये अब हम जानेंगे तीर्थराज प्रयाग का महत्त्व तथा वहा का दर्शनीय स्थल तो संपूर्ण विश्व में जितने भी प्रावित्रतम स्थान है उनमे भारत भूमि अत्यंत पवित्र है और उसमे भी पवित्रतम स्थान प्रयाग भूमि है| इसी कारण से इस भूमि को तीर्थराज प्रयाग भी कहा जाता है| यहाँ देव नदी गंगा, यमुना तथा सरस्वती इन् तीनो नदियों का पावन संगम है इसलिए इन् तीनो पवित्र नदियों के संगम को त्रिवेणी भी कहा जाता है| संस्कृत में वैदनी कहा जाता है चोटी को जब माताएं अपने केसों को तीन भाग करके जब गुथना आरम्भ करती है तो दो ही दिखाई देती है वस्तुतः वह होता तीन है उसी प्रकार प्रयागराज में गंगा, यमुना, सरस्वती तीनो प्रवाहित होती है पर दिखती दो ही है| भगवान श्रीराम ने भिवाल्मीकी रामायण के अनुसारप्रयाग क्षेत्र का विशिष्ट वर्णन किया है एव महाभारत में भी प्रयाग का पर्र्याप्त वर्णन है| महाभारत तथा पुराणों के अनुसार तो तीरथ राज प्रयाग में ६० करोड़ १० हजार तीर्थो का वास होता है| आइये अब हम जाने यहाँ के दार्शिनय स्थलों के बारे में|
त्रिवेणी माधवं सोम भारद्वाज च वासुकिम |
वन्दे अक्षयवट शेष प्रयाग तीर्थक्रम ||
त्रिवेणी, द्वादश, माधव, रामेश्वर, भारद्वाज आश्रम, नागवासुकी, अक्षयवट तथा शेषावतार बलराम का मंदिर एव स्वयं प्रयाग तीर्थ यह ही दर्शनीय स्थल है इन् स्थानमे जाकर पूजन अर्चन दर्शन करने का बहुत महत्त्व है| ऐसे तैथों में जाकर पाप कर्म तथा निंदनीय कर्मों से बचना चाहिए|
अन्य क्षेत्रे कृतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति |
पुण्य क्षेत्र कृतं पापं व्रज लेपों भविष्यति ||