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शनिवार व्रत का विधान
शनिवार व्रत का विधान
शनिवार व्रत का विधान भविष्योत्तरपुराण में वृद्धरूप से दिया है| शनिवार व्रत करने वाले स्त्री पुरुष को चाहिए कि शनिवार किसी महीने के शनिवार के दिन प्रातः काल सरसो का तेल लगाकर स्नान करे फिर शुद्ध वस्त्र धारण करे कुशादी पवित्र आसन पर पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख बैठ कर आचमन प्रणया करके पवित्री धारण करे फिर संकल्प करे संकल्प ॐ विष्णुविष्णुर्विष्णुः से करे या ओम मसान मासोत्तमे मासे पुण्य पवित्र मासे अमुक मासे अमुक पक्ष अमुक तिथौ अमुकवासरा निताया शुभ नक्षत्र शुभ योगे शुभ करण शुभ राशि स्थित श्री चन्द्रे शुभ राशि स्थित श्री सूर्य शुभ राशि स्थित “Dev guroo sheshesu graheshu yaha yatha rashi sthan sthiteyshu satshu grahgun gan visheshan vishishtaya shubh punya titho gotra shmarh vrmaah guptoh mm janam kundaliya varsh chaturth aastha dradassth shani janit saklaristh samnarth tatha ch shani devta suprasannrth shanivrathm karishy iss prakaar sankalp karne ke baad shani dev ki lihe ki murti sthapit karke poshshopchaar pujan kare”
सर्व प्रथम नीले रंग के फूल तथा काले तिल हाथ में लेकर शनिदेव का धयान करे धेयान के बाद आवाह प्राणप्रतिष्ठा ासन के निमित कला टिल शनिदेव को अर्पण करे उसके बाद पाट्या अर्घ आचमन स्नान पुनराचमनं के निमित पांच बार जल अर्पण करे पूजन करने के बाद शन्नो देवी इस वैदिक मंत्र से शनि देव की समिघा शमी की लकड़ी से तथा काले तिल से १०८ आहुति हवन करने के बाद ब्राह्मण भोजन कवाये उसके बाद उरद, गुड़, लोहा और नीले वस्त्र का ब्राह्मणों को दान दे और दिन में एक बार भोजन करे इस प्रकार से सात शनिवार व्रत करने से सभी प्रकार के शनि जाणीव आरिष्ट नस्ट हो कर उत्तम सुख प्राप्त होता है|