Mar
14
शिवरात्रि व्रत की विधि एव महिमा
शिवरात्रि व्रत की विधि एव महिमा
शिवरात्रि के दिन व्रत करने से संतुष्ट होकर भगवन शिव उत्तम सुख प्रदान करते है | शिवरात्रि व्रत हे सबसे अधिक बलवान है| इसलिए भो और मोक्षरूपी फलकी इच्छा राख्ने वाले लोगो को मुख्यत नित्यं पूर्वक शिवरात्रि व्रत करना चाहिए| फाल्गुनमास के कृष्णपक्ष में शिवरात्रि तिथि का विशेष महत्व है, जिस दिन ाआधी रात के समय तक वह तिथि विघमान हो उसी दिन उसे व्रत के लिए ग्रहण करना चाहिए| इस व्रत के प्रभाव से करोड़ो हत्यायो के पापो का नाश होता है , जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह सब पापों से मुक्त हो संपूर्ण सिद्धियों का फल प्राप्त कर लेता है|
स्वयं भगवन शिव ने कहा है शिवरात्रि के दिन सुबह उठकर आनंद के साथ स्नान आदि नित्य कर्म करे ,व्रत में झूट अप्सब्द दुर्वचन एव किसी का निन्दा अनादरस्याम भगवन शिव ने कहा है शिवरात्रि के दिन सुबह उठकर आनंद के साथ स्नान आदि नित्य कर्म करे ,व्रत में झूट अप्सब्द दुर्वचन एव किसी का निन्दा अनादर, अपमान नहीं करना चाहिए अनहि तो समस्त पुण्य नस्ट हो जाता है और कर्मानुसार दुःख की प्राप्ति होती है|
ात प्रातः काल स्नान इत्यादि से निवृत होकर प्रसन्नता पूर्वक शिवालय में जाकर शिवलिंग का विद्व्त पूजन करके शिव को नमस्कार करने के पश्चात उत्तम रीति से संकल्प करे|
अतः इस प्रकार संकल्प लेकर भगवान शिव का प्राथना करना चाहिए , हे देव! महादेव ! नीलकंठ! आपको नमस्कार है| देव ! मै आपके शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ | आप के कृपा से यह व्रत बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे कष्ट ना दे| ऐसा संकल्प करके पूजन सामग्री का संग्रह करे और उत्तम स्थान में जो शस्त्रप्रसिद्ध शिवलिंग हो अथवा शिवालय हो या पार्थिव लिंग का निर्माण करके आवाहन से लेकर विसर्जन तक क्रमश उनकी पूजा करे, पार्थिव लिंग का निर्माण मिट्टी से एव जो के आटे से शिवलिंग का निर्माण कर भक्ति भाव से युक्त होकर पूजन करना चाहिए| सर्वप्रथम शिवलिंग पर जल चढ़ाये , तपश्चात जल से मिला हुआ सफ़ेद चन्दन या लाल चन्दन से स्नान कराये, भांग, दूध, दही, घित, शर्करा चढ़ाकर पंचामृत से स्नान कराये पुनः पुनः जल से स्नान से करवाए , आइल बाद वस्त्र, काला तिल, पुष्पमाला, ध्रुवा, धतूर के फल फूल, कमल, कनेर,बेल पत्र चढ़ाकर, अबीर, गुलाल बुक्का, हल्दी, मिठाई, फल,ताम्बूल समर्पित करे| भगवन शिव पूए और खीर प्रिय है अतः खीर और पूए का भोग लगाना चाहिए| इस तरह पूजन कर रात्रि में प्रसन्नता पूर्वक जागरण करे और व्रत पूरा करके हाथ जोड़कर मस्तक झुका कर बार बार नमस्कार पूर्वक भगवन शम्भू से प्रार्थना करे|
इसके बाद पुरुष वर्ग ॐ नमः शिवाय, एव स्त्रिया नमः शिवाय या शिवाय नमः इस प्र्शासर मंत्र का १००८ बार जप करे| अंत में व्रत सम्बन्धी नियम का विसर्जन कर दे अपनी शक्ति के अनुसार शिवभक्त ब्राह्मणो विशेषतः सन्यासियो को बजाजन कराकर पूर्णतया संतुष्ट करके स्वयं भी भोजन करे|
भगवान शिव ने कहा है कि जिनसे इस प्रकार व्रत किया हो, उससे में दूर नहीं रहता | इस व्रत के फल का वरण नहीं किया जा सकता| मेरे पास ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिससे शिवरात्रि व्रत करनेवाले के लिए में दे न डालू | जो शिवरात्रि का व्रत करता है, में निश्चय ही उसके समस्त दुखो का नाश कर देता हूँ | अतः पूजन व्रत के समाप्ति के पश्चात क्षमा प्रार्थना करना चाहिए | अनजान में शिवरात्रि व्रत करने से एक भील पर भगवान् शंकर की अदभुत कृपा:-
एक भील रहता था, जिसका नाम गुरुद्रुह था | उसका परिवार बड़ा था तथा वह बलवान और क्रूर स्वभाव का होने के साथ हे कुरतापूर्ण कर्म में तत्पर रहता था | वह प्रतिदिन वन में जाकर मृगो को भरता वही रहकर चोरिय करता था | वह बचपन से ही कभी कोई शुभ कर्म नहीं करता था | इस प्रकार वन में रहते हुए उस दुरात्मा भील का बहुत समय बीत गया | अतः एक दिन बड़ी सुन्दर एव शुभ करक करनेवाला था इसलिए उस व्रत को नहीं जानता था | उस दिन उस भील के माता पिता और पत्नी ने भूख से पीड़ित होकर याचना की “वनेचर! हमें खाने को दो | उनके इस प्रकार याचना करने पर वह तुरंत धनुष बाण लेकर चल दिया और मृगो के शिकार के लिए सारे वन में घूमने लगा | देवयोग से उसे उस दिन कुछ भी नहीं मिला और सूर्य अस्त हो गया | इससे उसे बड़ा दुःख हुआ और वह सोचने लगा-“अब में क्या करूँ! कहा जाऊ? आज तो कुछ नहीं मिला | घर में जो बच्चे है उसकी भी क्या दशा होगी? अतः मेरे माता पिता का क्या होगा? पत्नी भी दुखी होगी, अतः मुझे कुछ लेकर ही घर जाना चाहिए अन्यथा नहीं | ऐसा सोचकर वे व्याध एक जलाशय के समीप पंहुचा और जह पानी में उतरने का घाट था , वहा जा कर खड़ा हो गया | वह मैं ही मैं यह विचार करता था की “यहाँ कोई न कोई जीव पानी पीने के लिए अवश्य आएगा | उसी को मारकर कृत कृत्य हो उसे साथ लेकर प्रसन्नतापूर्वक घर को जाउँगा | ऐसा विचार करके वह शिकारी एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया और वही जल साथ लेकर बैठ गया | भूख प्यास से पीड़ित होकर शिकार का प्रतीक्षा करने लगा| रात के पहले पहर में एक प्यासी हरिणी वहाँ आई, उस मृगी को देखकर व्याघ को बड़ा हर्ष हुआ और उसने तुरंत वध के लिए अपनड़े धनुष पर एक बाण का संधान किया ऐसा करते हुए उसके हाथ के धक्के से थोड़ा सा जल और बिल्व पात्र नीचे गिर पड़े | उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था | जल औए बिल्व पत्र से शिव की प्रथम प्रहर की पूजा संपन्न हो गयी | और उस पूजा के प्रभाव से विध का बहुत सा पाप तत्काल नष्ट हो गया | खड़खड़ाहट की आवाज को सुनकर मृगी भय से ऊपर की और देखि और बोली-
व्याध तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो? व्याध ने कहा, आज मेरे कुटुम्भ के लोग भूखे है, अतः तुमको मारकर उनकी भूख मिटाऊंगा | व्याध का वचन सुनकर मृगी बोली-
मेरे मॉस से तुमको सुख होगा, इस अनर्थ कार्य शरीर के लिए इससे अधिक महान पुण्य क्स कार्य और क्या हो सकता है | अतः इस समय मेरे सब बच्चे आश्रम में हे है | मैं उन्हें अपनी बहिन को या स्वामी को सौंपकर लौट आऊंगी | वचन लेकर व्याध मृगी को जाने दिया पहला पहर जागते जागते बीत गया तब उस हिरनी की बहन दूसरी मृगी भी अपनी बहिन को खोझते हुए उसी स्थान पर पहुँच गयी जल पीने क लिए | उसको देखकर भील ने धनुष उठाकर बाणो को तरकस से कीचा पुनः ऐसा करते हुए जल और बिल्वपत्र नीचे शिवलिंग पर गिर पड़ा जिससे इसकी पूजा सम्पन्न हो गयी | अतः वो भी डर कर व्याध से बोली मेरे व्होटे छोटे बच्चे घर में है | अतः में एक बार जाकर अपने स्वामी को सौंप दो फिर तुम्हारे पास लौट आऊंगी | पुनः दूसरा पहर जागते जागते बीत गया उसके बाद उसने जल के मार्ग में एक हिरन को देखा , वह धनुष बाण लेकर मारने के लिए तैयार हुआ, उस समय भी जल बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिरा और तीसरे पहर का भी पूजा सम्पन्न हो गया | उसके समस्त पाप नष्ट हो गया | शिकारी को देखकर मृग डर गया और बोली मुझे जाने दो मैं अपने बच्चों को उनके माँ के हाथों में सौंपकर आ जाउंगी | तीनो आश्रम पर मिले प्रतिज्ञा बृद्ध हो चुके थे और अपने बच्चो को पडोसीओ को सौंपकर वहां आ गए, पीछे पीछे बच्चे भी आ गये व्याध पुनः बाण उठाया उस समय भी जल बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिर पड़ा चौथे पहर की भी पूजा सम्पन्न हो गई | मृग के साथ बच्चे भी व्याध को देखकर निश्चय कर लिए कि मात की जो गति होगी , वही हमारी भी हो | व्याध का समस्त पाप नष्ट हो गया था इतने में ही दोनों दोनों मृगयो और मृग बोल उठे- व्याधशिरोमणे करके हमारे साहीर को सार्थक करो | उनकी यह बात सुनकर व्याध को बाद विस्मय हुआ शिवजी की कृपा से व्याध को ज्ञान प्राप्त हो गया | व्याध ने विचार किया ज्ञान हे होने पर भी धन्य है, इस प्रकार ज्ञान सम्पन्न होकर व्याध ने अपने बाण को रोका और कहा- “श्रेष्ठ मृगो! तुम जाओ| तुम्हारा जीवन धन्य है यह सुनकर शंकर तत्काल प्रसन्न हो गये और उन्होंने व्याध को अपने समानित एव पुजित स्वरुप का दर्शन कराया, तथा कृपा उसके साहीर का स्पर्श उसे प्रेम से कहा- “भील में तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं | वर मांगो | व्याध ने भगवन शिव के उस स्वरुप को देखकर तत्काल जीवन मृत्यु हो गया और “मैंने सब कुछ पा लिया यो कहता हुआ उनके चरणो के आगे गिर पड़ा | शिव भी मैं ही मैं प्रसन्न हुए और उससे “गुह” नाम देकर उसे दिव्य वार दिए | आज से तुम त्रिदग्वेरपुरम उत्तम राजधनी का आश्रम ले दिव्य भोगों का उपभोग करो | और त्रेता युग में भगवान श्री राम चन्द्र जी के साथ तुम्हारी मित्रता होगी | और अंत में मोक्ष कोप्राप्तः करोगे | मृग बजि भगवान् शंकर का दर्शन कर प्रणाम करके मृगयोनि से मुक्त हो आगये, शिवलोक में चले गए | तब से अर्बुद पर्वत पर भगवान् शिव्याधीश्वर नाम से प्रसिद्द हुए | अपना हित चाहनेवाले मनुष्यों को इस शुभ शिवरात्रि का व्रत अवश्य करना चाहिए |