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मांगलिक योग
मांगलिक योग
हम जानेंगे मांगलिक योग के विषय में आजकल इसी को मंगला मंगली दोष कहा जाने लगा है| वस्तुत यह मांगलिक योग है दोष नहीं लड़का या लड़की के विवाह के पूर्व मंगल योग का विचार निश्चित रूप से करना चाहिए| जैसे लड़का या लड़की की कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से १,४,७,८ तथा २ रहवे भावो में यदि मंगल हो तोह कुंडली मांगलिक होती है यदि लड़के की कुंडली में ऐसा योग हो तो उसकी पत्नी का नाश तथा लड़की की कुंडली में ऐसा योग हो तोह उसके पति का नाश होता है|
आये अब हम जाने की इस परिस्तिथि में हमे क्या करना चाहिए| तो ऐसे में निश्चित रूप से मंगली लड़की का विवाह मंगला लड़के से करना उचित है अथवा मंगली कन्या का विवाह किसी ऐसे लड़के से करना चाहिए जिसकी जन्म कुंडली में ग्रह बलवान हो , आयुष योग प्रवल हो| वर कन्या की लगन कुंडली, चंद्र कुंडली अथवा प्रसन कुंडली में मंगल या पापग्रहो के समतुल्य भावो में मंगल या अन्य पाप ग्रह रहने पे परस्पर विवाह शुभ फलकारक होता है, वर कन्या के १,४,७,८,१२ रहवे
- भाव में शनि से मांगलिक योग स्वयं समाप्त हो जाता है|
- मंगल गुरु एक साथ हो अथवा मंगल चन्द्रमा का योग हो या चन्द्रमा केंद्र अर्थात १,४,७,१० वे स्थान में हो तोह मांगलिक होने का दोष कट जाता है|
इसके अलावा एक और प्रभाणी परिहार है|
चन्द्रमा शुक्र दूसरे स्थान में हो अथवा मंगल पर बृहस्पति की दृस्टि हो अथवा मंगल राहु के एक साथ होने पर भी मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है| एक और छोटा परिहर है अर्थात कुंडली मिलाप में २५ से अधिक गुण बन रहा हो तो मंगली होने का दोष कट जाता है| और हमारे ज्योतिष के विद्वानों का तो यह भी मत है कि २८ वर्ष के उम्र के बाद मांगलिक योग होने का प्रभाव नहीं होता है| फिर भी यदि किसी लड़के या लड़की की कुंडली में मंगलक योग है और उसका परिहार भी हो रहा है तो भी मंगल की शांति अवश्य करवाना चाहिए क्यूंकि हमारे सनातन धर्म में स्मृतियो के मत से सोलह संस्कार है और इन सोलहो संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार पाणिग्रहण संस्कार (अर्थात विवाह संस्कार है तो इन में कही से भी भूल नहीं होना चाहिए यदि लड़की मंगली हो तो मंगल का जप तथा कुम्भ विवाह करने का विधान है और लड़का मंगल हो तो दुर्गा, अग्नि और विष्णु का जप करवाएं तथा तराशंस हवन करे तो मंगली योग का निवारण हो जाता है उसके बाद विवाह करने में किसी प्रकार का भय नहीं है|
अब हम जाने कुम्भ विवाह कब होता है और कैसे होता है|
तो विवाह के ही विहित शुभ लग्न में कुंभ विवाह करने का विधान है| कन्या का पिता अपनी कन्या के साथ विष्णु के मंदिर में अथवा अपने घर पर शुद्ध स्थान पर तथा शुद्ध आसन पर कन्या सहित बैठे कन्या पिता के दाहिने और बैठे और अपने ऊपर जल छिडकी तथा आचमन प्रणया पवित्री धारण करके घी का दीपक प्रज्वलित करे फिर दीपक का ध्यान करे उसके बाद शंख का पूजन करे कन्या और कन्या का पिता हाथ में अक्षत पुष्प लेकर सभी देवताओं का ध्यान करे फिर संकल्प करे| इस प्रकार संकल्प करने के बाद पूयजन के अंतर्गत जितने पूयजन होते है वह पूजन करे उसके बाद एक चौकी पर ास्ट दाल का निर्माण कर उस पर विधिवत कलश का स्थापन कर, वरुण का आवाहन कर पूजन कार्य करे उस के बाद सोने की बनी श्री विष्णु प्रतिमा का पवित्रिकरण कर प्राण प्रतिष्ठा कर के उसका स्थापना करे और षोडशोपचाते दवारा पूजन कर विष्णु भगवन की तथा अन्य देवता एव देवियों की प्रार्थना करे|उसके बाद मघुपर्क विधान कर के वस्त्र अलंकार अर्पण करे उसके बाद अंट पत करके कन्या स्थापित घड़ा को अपने हाथ में ले मंगल शोलक पड़ने के बाद ॐ प्रतिष्ठ कहकर कन्या उस कलश को पुनः चौकी पर बनी अस्तदल पर स्थापित कर दे| उसके बाद अंट पट को हटा दे|
उसके बाद कन्या के लिए वस्त्र उपवस्त्र मंगल सूत्र लेकर मंत्र द्वारा दसबार घट के चारो तरफ उन् सामग्रियों को घुमाकर कन्या का पिता यह कहकर प्रदान करे कि यह सामग्री कुम्भ और कन्या दोनों के लिए प्रदान कर रहा हूँ| उस के बाद पिता मंगल सूत्र को घड़े पर बांधे और कुम्भ स्थित श्री विष्णु को कन्या समर्पित करते हुए मांगलिक श्लोक पढ़े उसके बाद कन्या का पिता बोले की कुम्भ रूपी विष्णु को अपनी लक्ष्मी स्वरूपा कन्या समर्पित करता हूँ |
जल सिंचन के बाद विवाह करने वाले आचार्य को चाहिए कि शुद्ध जल द्वारा इंद्रा, वरुण, वायु आदि के वैदिक मंत्रो को पढ़े और कन्या का सिंचन करे |
सिंचन के बाद कन्या को शुद्ध वस्त्र धारण करवाए और विवाह कार्य वाले वस्त्रादि सामग्री अपने आचार्य अथवा पुरोहित को श्रध्दापूर्वक प्रदान करते हुए कन्या तीन बार यह कहे कि यह संपूर्ण वस्तुए में आचार्य को दे रही हूँ कन्या द्वारा प्रदत्त सामग्री को लेकर आचार्य कहे की एवमस्तु और कन्या को आशीर्वाद दे | उसके बाद कुम्भ विवाह के निमित्त और मनोवांछित फलप्राप्ति की कामना के लिए आचार्य अथवा पुरोहित को गोदनादि और नाना नाम गोत्र वाले ब्राह्मणों को कन्या के सूक्ष्म दोषों को दूर करने के निमित्त भूयषी दक्षिणा विभाजित कर के प्रदान करे |
आचार्य से आशीर्वाद लेकर | भगवान् विष्णु का प्राथन करे | प्राथना करने के बाद कन्या तीन बार बोले ॐ विष्णवे नमः
उसके बाद कन्या आसन के पास एक आचमनी जल गिराकर माथे पर लगावे और स्थान ले|