May
07
अक्षय तृतिया का महत्व
अक्षय तृतिया का महत्व
इस वर्ष अक्षय तृतिया का पर्व ७ माय दिन मंगलवार के दिन पडेगा अक्षय तृतिया का अर्थ है क्षय न होने और इसलिए इसका नाम अक्षय पड़ा और यह बैशाख माह शुक्ल पक्ष के तृत्य तिथि को पड़ने के कारण इसे अक्षय तृतिया कहा जाता है |
भविष्य पुराण के अनुसार युग तिथियों का आरम्भ भी इसी दिन से शुरू हुआ था जैसे सतयुग, तेत्ता युग, द्वापर युग और कलयुग का आरम्भ भी अक्षय तृतिया से आरम्भ है| भगवान् वेद व्यास जी द्वारा कहा गया हैकि महाभारत का युद्ध द्वापर युग में १८ दिनों तक चला और जिस दिन इस युद्ध का अंतिम था वह दिन भी अक्षय तृतिया का दिन था | इसलिए अक्षय तृतिया को लोग इसे बड़े धूम धाम से मनाते है|
दूसरी बात यह है कि उस दिन भगवान बद्रीनाथ के मंदिर का कपट भी इसी दिन भक्तों के लिए खोला जाता है और केदारनाथ जी की भी पूजा अर्चना भी इसी दिन से पुरे विधि विधान से आरम्भ हुआ था |
वृन्दावन के बाकेबिहारी जी के मंदिर में भगवान् बाकेबिहारी के चरण कमल के दर्शन भी इसी अक्षय तृतिया के दिन होता है| इसके बाद उन चरणों को कपडे से ढक दिया जाता है और फिर एक वर्ष बाद उन् चरण कमलों के दर्शन पाकर भक्तगण प्रफुल्लित जाते है और प्रसन्न मन से भगवान् उनके सभी मनोकामना पूर्ण करते है |
आगे शास्त्रों में वर्णित है की भगवान् नर और नारायण का अवतार जो लिया था उस दिन भी अक्षय तृतिया थी , और भगवान विष्णु का पशुराम अवतार भी इसी दिन को हुआ था इसलिए इस तिथि को पसूराम जयंती भी कहा जाता है और भगवांन विष्णु ने हैकियु नामक राक्षस का वध करने के लिए हैकीदुइ अवतार भी इसी अक्षय तृतिया के दिन लिया था इसी लिए इस अक्षय तृतिया का महत्व इतना अध्यात्मिक है
और कहा गया है कि वैशाख माह शुक्ल पक्ष की तृतिया तिथि के दिन जो लोग सगर और गंगा में स्नान करते है| उन् सभी लोगो का पाप का नाश हो जाता है गंगा या अन्य नदियों में स्नान करने के बाद जो लोग मिहि के घड़े में जल भरके जल से भरा घड़ा दान करते है| उन् लोगो के घर कभी भी कमजोरी नहीं आती क्युकी जलके देवता वरुण है और शरीर में जल अधिक मात्रा में पाया जाता है| जिसके प्रभाव से हमारे शरीर में रक्त संचार होता है और तत्व का संचार वरुण देव करते है इसलिए जल के दान से वरुण देवता प्रसन्न होते है और आरोग्यता का वरदान देते है इसलिए उस दिन जल का दान दिया जाता है|
और उस दिन छत्र का दान भी दिया जाता है छत्र का अर्थ है कि छाता और उपना यानी जूता और पंखा का भी दान दिया जाता है| क्युकी वसंत ऋतु की समाप्ति होती है और ग्रीष्म ऋतू का आगमन होता है और ग्रीष्म ऋतू में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है और सूर्य का तेज भी बहुत अधिक बढ़ जाता है| जो लोग दूसरों को चाता , जूता और पंखा दान करते है उन्हें भगवान् सूर्य प्रासाना होकर आशीर्वाद रूप में वरदान देते है की अब तेज़ किरणों का प्रभाव उनके ऊपर नहीं पड़ेगा और सूर्य की किरणों द्वारा उतपन्न होने वाले सभी रोगों से भी उनको कोई प्रभाव नहीं होगा और जो लोग इन् सभी चीज़ों का दान करते है भगवान् सूर्य देव उन्हें खुशिया और अरोग्यता प्रदानं करे है| जो लोग अक्षय तृतिया के दिन दान करते है उस दी दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है और दूसरी बात यह है की भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का उस दिन पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए क्युकी कहा गया है की पदम् पुराण में उल्लेख है कि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तृतिया तिथि को जो व्यक्त माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा सफेद गुलाब व सफ़ेद कमल पुष्पों द्वारा पड़ता है उससे माँ लक्ष्मी विशेष रूप से स्थिर लक्ष्मी का वरदान देती है और भगवान विष्णु उसे सुख और समृद्धि प्राप्ति का वरदान देते है इसमें कोई संशय नहीं है| आगे भगवान् कहते है की अक्षय तृतिया के दिन स्वर्ण का भी दान किया जाता है और उसी दिन स्वर्ण को खरीदा भी जाता है जिससे उस दिन ख़रीदा गया स्वर्ण अक्षय स्वर्ण बनकर उनके घर में दरिद्रता का नाश करती है क्युकी कहा गया है कि स्वर्ण में तेज़ होता है और उस तेज़ से कभी भीघर में द्ररिद्रता नहीं आती है| इसलिए उस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का पूरे विधि विधान से पूजा करनी चाहिए और ब्राह्मणों और गरीब लोगो को दान देना चाहिए क्यूंकि उनके दान से उनका अक्षय दान हो जाता है और पूर्व जनम में उन्हें उस दान के प्रभाव से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है इसमें कोई संशय नहीं है|