May
10
यज्ञ का महत्व
यज्ञ का महत्व
आज हम लोग जानेगे यज्ञ करने से किस प्रकार फल की प्राप्ति होती है और आहुति डालने से किस प्रकार देवताओं को भोजन प्राप्त होता है देखिये जब हमलोग यज्ञ करते है या पूजा पाठ करते है तोह उससे किस प्रकार देवताओं को भोजन की प्राप्ति होती है और मनुष्यों का कल्याण होता है| इस विषय में आज हमलोग जान कारी प्राप्त करेंगे देखिये जब हमलोग यज्ञ करते है तो सबसे पहले हवन कुंड का निर्माण करते है और और हवन कुंड का निर्माण करके उसके अंदर बीच में अग्नि देवता का यन्त्र बनाते है और उस यन्त्र के ऊपर ग्रन्थ शब्द लिकते है और उसके ऊपर लकड़ियाँ रख कर के अग्नि देवता का आवाहन करते है| “हे अग्नि देवता आपदेवताओ के दूत हो सठ में पुरोहित को और आहुती को ले जाने व् ले ानेवाले हो अर्थात हरी का वहन करने वाले हो| अब यजमान इस प्रकार से प्रार्थना करता है या यजमान के प्रतिनिधि के रूप में वह ब्राह्मण प्राथना करता है और कहता है| “हे अग्नि देवता में जिन देवताओं को जानता हो या न जानता हो आपुण सभी देवताओं को भेजिए जब यग्य बड़ी बनती है तो उसके चारो और कुशाए बिछाई जाती है वह कुशा देवताओं का आसन होती है और वो देवता लोग वायु का रूप धारण करके अदृश्य रूप में उन् सभी कुशाओं पर बैठ कर आहुतिया प्राप्त करते है|
अच्छा कैसे प्राप्त करते है? देखिये अग्नि देवता की दो पत्नियां है सवाहा और स्वधा सवाहा देव कर्म में बोला जाता है और स्वधा पितृ कर्म में बोला जाता है सवाहा की इतनी तेज़ गति है की ब्राह्मण के मुख से निकला शब्द सवाहा तुरंन्त आहुति उस देवता को पंहुचा देती है| सवाहा नामक स्त्री उन्ननुन्न देवताओ को भोजन एव आहुति प्रदान करती है| अच्छा अब देखिये देवताओ को आहुति कैसे ग्रहण करते है क्युकी हमने तोह बोल्दिया सवाहा जो की आप न देख रहे है न हम देख रहे है की यह इस प्रकार फल प्राप्त हो रहा है| देखिये जो है की कुछ वस्तुएं है जिनको खा कर के उसका स्वाद को ग्रहण किया जाता है और कुछ को सुगंद के दवारा देवताओ तृप्ति हो जाती है| जैसे हवन जब करते है तो हवन में जो औषिधय होती है उनका नाम है सुगन्ध्बाला, सुगंदगोठिला, कचरी, कपूर, अगर, तगर, ब्राह्मी, ब्रह्मबूटी, सतावरी, शीला , अतीत, दारु, हल्दी, वज्रचम्पक, गुड़ इत्यादि जो, काळातील, चावल, यह सब जो है की सभिधाये होती है यज्ञ के लिए और इनकी आहुती दे जाती है जब यह सामग्री अग्नि में डाली जाती है तोह इनके सभी तत्त्व जो है की जल कर के नष्ट हो जाती है| और इसमें जो रस है वह रस को धुआ के माध्यम से उस रस कोदेवता लोग प्राप्त करते है और उस सुगंद से तृप्त हो जाते है और यज्ञ कर्ता को अभीष्ट फल देते है|
अच्छा हमलोग अब यह जानते है की यज्ञ करने से देवता लोग हमारा कल्याण कैसे करते है? देखिये देवता हे हमारा कल्याण नहीं करते है बल्कि यज्ञ करने से सृस्टि का भी कल्याण होता है| भगवान् श्री कृष्णा ने गीता में कहा है कि जब यज्ञ होगा तो वर्षा होगी और जब वर्षा होगी तो अच्छे अन्य उत्पन्न होंगे और जब अच्छे अन्य उत्पन्न होंगे तो अच्छे अन्य उत्पन्न होंगे और जब अच्छे अन्य उत्पन्न होंगे तो उस सुन्दर अन्य को खा कर के अच्छे व सुन्दर प्रजा उत्पन्न होगी वह बलवान और साथ में धर्मात्मा भी होंगे| कैसे? देखिये हर छोटी वस्तुएं जो है की बड़ी वस्तु में जा कर क मिल जाती है जैसे मान लीजिये पृत्वी पे बहुत बड़ी आग लग जाती ाही और उसकी लपटें बहुत ऊंची हो जाती है| जब वह लपटें ऊपर के औऱ जा क के बिलुप्त हो जाती हैऔर वह लपटें आकाश में जो की सूर्य की जो किरणें है वह इन् अग्नियों को अपने अन्दर ग्रहण कर लेती है| और जब गर्भ एक साथ मिलता है तो वाष्प बन जाता है और जब वाष्प बन जाता है या पृथ्वी पर हमलोग जो जल गिराते है वह सब खा चला जाता है? उस जल को सूर्य की किरणे सोकर के आदित्य मंडल में ले जाती है और वास्प रूपी जल को भी सूर्य की किरणे आदित्य मंडल में ले जाती है| और सूर्य के किनारे किनारे जो नीले रंग की बादल दिखाई देती है वह जलो का समूह है वेदों में कहा गया है कि अग्नि पृथ्वी का पति है क्यूंकि इसी अग्नि पे हमलोग खाना बनाते है तो सुन्दर अन्य बनता है उसी को हमलोग ग्रहण करते है अग्नि नहीं रहेगी तो खाना खा से बनेगा उसी अग्नि पे खाना बनाते है| वही अग्नि हमारे अंदर चिरग्नि के रूप में हमारे पेट के अन्दर जो खाना खाते है उससे पचाती है वही अग्नि जो है की कूड़ा करकट को जला कर के भस्म कर देती है| और शुद्ध पवित्र वाता वरण बनती है इसलिए अग्नि देवता पृथ्वी के स्वामी है| आदित्य रूप में दुइ लोक यानी स्वर्ग लोक में अग्नि देवता के रूप में विद्यवान है अब देखिये ज्योतिष शास्त्र के अनुशार जो है की सूर्य चन्द्रमा कडे नक्षत्र पे जाते है और चन्द्रमा सूर्य के नक्षत्र पे जाते है तो वर्षा होती है और यह तो कर्म सूर्य भी चन्द्रमा के नक्षत्र पर जायेंगे और चन्द्रमा भी सूर्य के नक्षत्र पे जाएंगे परन्तु जो यं यज्ञ करते है उसका इससे क्या सम्बन्ध है? देखिये हम जो यज्ञ करते है और यज्ञ से जी दुआ उत्पन्न होता है वह दुआ वायु मंडल में अर्थात पृथ्वी से डेढ़ अंगुल ऊपर अंतरिक्ष लोक चालू हो जाता है अंतरिक्ष के ऊपर आकाश है जो दुआ पृथ्वी से उत्पन्न हो कर के अंतरिक्ष मण्डल से होते हुए वायु मंडल में जाती है और वायु को पवित्र करती है क्युकी गन्दा वायु भी बहता है और शुद्ध वायु भी बहता है तो दुआ वायु को शुद्ध कर के वह उससे सूर्य मण्डल में ले जाता है जो हमलोग अग्नि जलाते है सवाहा सवाहा बोलते है जो अग्नि जलती है वह अग्नि भी ुवार जा कर के सूर्य के किरणों में मिल जाती है| वह वाष्प रूप में जेल में पहले से हे विद्वान रहती है और जो यहाँ से दुआ है वह पहले तो वायु को शुद्ध कर के सूर्य मण्डल में ले जाता है| और वह सूर्य मंडल से जल को ले कर के चंद्र मंडल पर जाता है चन्द्रमा के नक्षत्र पर क्युकी चन्द्रमा को सदियो का राजा कहा गया है| जब चंद्र मंडल पर शुद्ध वायु और शुद्ध जल मिलते है तो पृथ्वी पर शुद्ध जल की वर्षा होती है और तब शुद्ध अन्य उत्पन्न होंगे जब हवन नहीं होगा तो दूषित वायु व दूषित जल चंद्र मंडल में जाएंगे तो दूषित वर्षा होगी और दूषित अन्य उत्पन्न होंगे तोह उसमें रोग लग जाएगा इन् रोगो को ायु रोग कहते है जिससे फसल नस्ट हो जाती है और सुन्दर कृषि की प्राप्ति नहीं होती है इसीलिए हवन करने से शुद्ध वायु सूर्य मंडल से चंद्र मंडल में जाती है और चंद्र मंडल से शुद्ध जल की वर्षा होती है और उसे शुद्ध और सुन्दर कन्या उत्पन्न होती है आप लोग कभी दूसरे के घर खाना खाने जाते है या अपने घर खाना खाते है तोह कभी कभी ऐसा लगता होगा कि हमलोगो ने कितना सुन्दर भोजन किया और आपकी आत्मा संतुष्ट हो जाती है और कभी कभी आप लोग ऐसा भोजन करते है की लगता है की आत्मा संतुष्ट नहीं हुई तो देखिये जब अमृत रुपी जल पृथ्वी पे बरसता है तो उससे उत्पन्न हुए सुन्दर अन्य ग्रहण करके हम संतुष्ट होते है तो आपके किये हुए स पुण्य कर्म के दवारा वर्षा होने के चलते हजारों करोड़ो के घर वर्षा होती है उस वर्षा से सुन्दर कन्या उत्पन्न होते है और उस सुन्दर अन्य को ग्रहण करने से लोग आत्मा प्रसन्न होकर के आशीर्वाद देते है या कहते है की हमलोगो की आत्मा संतुष्ट हुई तो यह आशीर्वाद यज्ञ कर्ता को फल प्राप्त होता है और उस फल को प्राप्त होने के कारण जो कि पहले ही कहा गया है कि क्रमश समझाया गया है कि गाली देने से जब विद्रो हो सकता है तो शुद्ध शब्द बोलने से कल्याण भी हो सकता है अशुद्ध वाणी बोलने से मृत्यु हो सकती है हार्ट अटैक भी हो सकता है तोह शुद्ध वाणी बोलने से कल्याण भी हो सकता है इसीलिए सभी लोग प्रसन्न हो कर के अपने आत्मा के दवारा जो आशीर्वाद देते है वह सत्य रूपी ब्रह्मा जो है यज्ञ करता को फल प्रदान करता है| उससे उसका कल्याण होता है और अगर वह राजा के दवारा किया गया यज्ञ है तो उससे सुन्दर प्रजा की प्राप्ति होगी और अगर गृहस्त के दवारा किया गया है तो उससे सुन्दर पुत्र व पौत्र की प्राप्ति होगी|