May
16
पूजा पाठ करने की विधि
पूजा पाठ करने की विधि
आज हम लोग जानेंगे की पूजा करने से किस प्रकार फल की प्राप्ति होती है और किस प्रकार फल नष्ट होते है पूजा कैसे करनी चहिए उसका क्या विधान है ? किस प्रकार अनुष्ठान के व्रत का पालन करना चाहिए उस विषय में हम लोग जानेंगे | देखिये जब भी व्यक्ति अपने घर में कोई अनुष्ठान करवाते है तो चाहे सत्यनारायण का कथा हुआ, महा मृत्युंजय का जाप हुआ या नवरात्र में नव चंडी का पाठ हुआ या कोई भी अनुष्ठान आप विधि पूर्वक करवाते है पैसा भी खर्च करते है परन्तु उसका संपूर्ण फल आपको प्राप्त नहीं होगा | उसका कारण है की अनुष्टान जो करने वाले है उनसे कही न कही कोई गलती हो जाती है वह क्या गलती होती है इसके बारे में आज हम आपको बतलाने वाले है | देखिये शास्त्र में कहा गया है कि यह संसार जो है की देवताओं के आधीन है और देवता मंत्रों के आधीन है और मंत्र ब्राह्मणो के आधीन है इसलिए ब्राह्मणों को देवता कहा जाता है आप कोई भी अनुष्ठान करवाते है तो ब्राह्मण को आचार्य बना कर के अपने घर बुलाते है की आप पंडित जी हमरा पूजा करवाइये | जो पूजा करवाते है उन्हें कहा जाता है आचार्य और जो पूजा करते है उन्हें कहा जाता है यजमान आचार्य का अर्थ है की जिसका आचरण पवित्र हो और जो शुद्ध शुद्ध मंत्रो का पाठ कर सके अर्थात वह अंदर और बाहर से पवित्र हो करके सिद्धता पूर्वक मन्त्रो का पाठ कर सके उच्चारण कर सके उसे आचार्य कहते है | यजमान का अर्थ है की जो अच्छी प्रकार निष्ठा पूर्वक उस देवता का विधि विधान दवारा पूजा करता है उसे यजमान कहते है| मान लीजिये की आप अपने घर में पूजा करवा रहे है उसी समय कोई आपका मेहमान बहार से चला आया हो पता चला की आप पूजा रोक कर के पंडित जी आप एक मिनट रुकिए उनको हम थोड़ा बैठा ले फिर थोड़ी देर बाद पंडित जी रुकिए फ़ोन आ गया इससे क्या होता है की पूजा में दोष उत्पन्न होते है | जैसे आप पूजा करवाई है तो सबसे पहले गणेश जी का आवाहन करते है वो इसलिए कि हमारे घर में सब लोग प्रिय से रहे अच्छे से रहे धनवान रहे इस कामना से भगवान गणेश को है वह विराट पुरुष है कहा गया है कि तुम ब्रह्मा हो तुम विष्णु हो तुम हे रूद्र हो अर्थात समदत भू मंडल के संपूर्ण देवता तुम्हे हो मान लीजिए आप मन्त्रो के दवारा आवाहन करा रहे है और कहा गया है कि देवता मन्त्रो के आधीन है जो हे आपने मंत्र पढ़ा वह तुरंत हे देवता आ गए अदृश्य रूप में और उसी समय कोई मेहमान आ गया और पुनः आप पंडित जी रखिये आप थोड़ा बैठा ले उनको चाय पीला ले उस समय पूआज खंडित हो जाती है | जो देवता का आवाहन किया गया है जो समस्त संसार के स्वामी है और उनको छोड़ कर के आप मनुष्यों के तरफ भागने लगे तो वह देवता नाराज हो जाते है – जैसे मान लीजिए आप किसी के घर गए आपको लोगो ने बैठाया उसी समय दुसरो के स्वागत में चले गए तो आप नाराज़ होंगे कि नहीं कि मुझे बैठाया और फिर सारे लोग चले गए फिर आधा घंटा बाद आये और आधी बात सुनकर के फिर चले गए तो आप नाराज़ होंगे और बुरा मान कर के उनके दरवाज़े पे कभी नहीं जाएंगे ठीक उसी प्रकार देवता भी नाराज़ हो जाते है इसलिए कोई भी पूजा पाठ करना चाहिए तो उसका क्या नियम है यह दुर्गा सप्तशती में कहा गया है की पूजा जो है की वह गोपनीय चीज़ होती है दैविक शक्ति जो है या मनुष्य की जो भी शक्ति होती है वह गोपनीय होती है वह किसी को भी दिखाई नहीं देती आप हम काम कर के अपने घर लाते है तो सबको नहीं दिखाते की हमारे पास कितना पैसा है चु की उससे छुपा कर के रखते है गोपीनिये रखते है | जब आव्सकता पड़ती है तो निकालते है ठीक उसी प्रकार अनुष्ठान है यह बहुत गोपनीय है प्रदर्शन वाला नहीं इसको निष्ठा पूर्वक एकांत में गुप् रूप से अनुष्ठान करना चाहिए इसमें कोई भिग्न बाधा उत्पन्न न कर सके जहाँ कोई आ गया और उसमे भिग्न बाधा उत्पन्न कर देगा तो वह पूजा असफल हो जाएगी | जिस प्रकार बालू में अपनी डालने से उसका अस्तित्व खत्म हो जाता है ठीक उसी प्रकार पूजा पाठ में ब्रिगन बाधा उत्पन्न होने से उस पूजा का फल वह व्यक्ति को नहीं मिलता है वह पूजा का फल इंद्र देवता को प्राप्त हो जाता है अगर आप की भी पूजा को करवाते है तो एकांत में एकार्गरा हो कर के बैरागी के समान पूजा करनी चाहिए उसमे कोई भी भिग्न बाधा उत्पन्न न कर सके तो किसी को नहीं बुलाना चाहिए अगर बुला भी लिया तो ऐसे व्यक्ति को बुलाना चाहिए जो धर्मात्मा हो धर्म को जानने वाला हो वे आकर के चुप चाप बैठ जाये मंत्रो को सुने इस प्रलकार करने से निस्चय फल की प्राप्ति होती है इसमें कोई भी संशय नहीं है |