May
21
क्यों करते है कर्मकाण्ड
क्यों करते है कर्मकाण्ड
आज ज्योतिस्त शास्त्र एवं कर्मकाण्ड के बारे में बताने जा रहा हूँ | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के जीवन में किस प्रकार सुख की प्राप्ति होती है और दुखों का नसस होता है तथा कर्मकांड करने से किस प्रकार मनुष्यों का कल्याण होता है सर्वप्रथम जब इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई इस सृष्टि को उत्पन्न करने वाले विराट पुरुष थे वेदों के अनुसार स्वर्ण रूपी गर्व से जो उत्पन्न हुआ है वो विराट पुरुष सभी मनुष्यो से प्राणियों से पहले उत्पन्न हुआ है और वो सभी का स्वामी हुआ है | इसके पश्चात उसने पृथ्वी को अंतरिक्ष को और द्विलोक को धारण कर कर के इस सृष्टि की रचना की और उस विराट पुरुष के मुख से वेद की उत्पत्ति हुई कहा गया है कि भगवान् वेद पुरुष के छः अंग है ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है की वेद माने ज्ञान और भगवान् वेद पुरुष के इन्ही छः अंगो के द्वारा मनुष्यों के जीवन का इष्ट प्राप्ति के लिए अनिष्ट के निवारण के लिए संसार के कल्याण करने के लिए जो उपाए बनाये गए है अतः जो वेदों में कहा गया वही वैदिक ज्ञान है वहीं ज्योतिष शास्त्र है और उस विराट पुरुष का छः अंग है | पहला शिक्षा दूसरा कलप तीसरा व्याकरण चौथा निरुक्त पाचवा छन्द और छठा ज्योतिष इनका क्या कार्य है भगवान् विराट पुरुष का पाँव जो है छन्द हाथ जो है वह है कलप ज्योतिष शास्त्र हो है वह है आँख निरुक्त शास्त्र जो है की कान और शिक्षा जो है की भगवान् वेद पुरुष की जीभा और मुख जो है व्याकरण जिसके दवारा शुद्ध शुध से उपचारां कर सके इस प्रकार सभी छह वेद अंगों की रचना की गयी है इसमें ज्योतिष शास्त्र आता है | ज्योतिष शास्त्र का अर्थ होता है की ज्योति मने प्रकाश मनुष्य जो जनम से अनुवेशक प्राणी है यानि वह सूध करता है कि क्या सत्य है क्या असत्य है किस प्रकार जीवन जीना चाहिए किस प्रकार रहना चाहिए इसीलिए वह ज्योतिष शास्त्र में उपाय बताए गए है की मनुष्य का कल्याण किस प्रकार होगा क्योंकि सूर्य आदि ग्रहों के बोध करने का शास्त्र का नाम है ज्योतिष शास्त्र यह जो है गृह काल ज्योतिष शास्त्र के परिभाषा इस प्रकार है पहला स्कंध है सिद्धांत शहिता और होरा शास्त्र इस प्रकार यह पांच स्कंद भी है सिद्धांत हूरा शहिता प्रसन्ना शास्त्र शुभ और अशुभ कर्मों को जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र की सहायता ले जाती है मनुष्य का किस प्रकार कल्याण होगा उसी प्रकार वेदों के लिए भी प्राचीन काल में ज्योतिष शास्त्र के दवारा यह देखा जाता था कि कौनसा मुहूर्त शुभ है किस समय कौनसा कार्य करना चाहिए किस जगह भूमि पर घर बनाना चाहिए ज्योतिष शास्त्र से वास्तु शास्त्र का भी बड़ा सम्बन्ध है जैसे पिंड का लम्बाई चौड़ाई कितना होना चाहिए किस घर में निवास करना चाहिए जिससे सुख की प्राप्ति हो वह ज्योतिष शास्त्र के दवारा हे याद किया जाता है | प्राचीन काल में यज्ञ इत्यादि करने के लिए भूमि का चयन किया जाता था वह ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ही निर्णय किया जाता था की कोनसी भूमि सही है और कोनसी गलत है और कब यज्ञ करना चाहिए और उससे क्या लाभ होगा तथा ग्रहों की शांति के लिए सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रजा कल्याण के लिए शुभ और अशुभ समय को जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र के दवारा गरणा की जाती थी जिसके दवारा मनुष्य के जीवन के बारे में पता लगाया जा सकता था | जिससे यह व्यक्ति आगे चल कर के क्या करेगा इसकी कितनी आयु होगी और यह अपने जीवन में किस प्रकार के सुख और दुखों का भोग करेगा क्योंकि पहले किये गए कर्मो के अनुसार ही मनुष्य जीवन में सुख और दुःख दोनों का फल भोक्ता है इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के जीवन के बारे में पता किया जाता है तथा ज्योतिष शास्त्र में जो उपाय बतलाए गए है उनके नियमो को पालन करने के लिए और मनुष्य के जीवन के दुखो को दूर करने के लिए कर्मकाण्ड की आव्सकता पड़ती है क्योंकि भगवान् वेद पुरुष ने देखा कि मनुष्य ज्ञानी तो होंगे विद्वान् भी होंगे लेकिन उनका कर्म कैसा होना चाहिए किस प्रकार संसार का कल्याण करेंगे और किस प्रकार उनके दुखो की निवृत्ति होगी इसीलिए यज्ञ अनुष्ठान के नियम बनाए गए है | इन् नियम के अनुष्टानो को करने से मौश्यो का कल्याण होता है इसमें कोई संशय नहीं है तथा इष्ट की प्राप्ति होती है और दुखो का निवारण होता है | मनुष्य के जीवन के तीन प्रकार के कष्ट है जो सबसे बड़े होते है पहला अध्यात्मिक दुसरा आधिदैविक और तीसरा आधिभौतिक देखिये मनुष्य के जीवन में देखिये मनुष्य के जीवन चह के प्रकार के शुख होते है और छह प्रकार के दुःख भी होते है वह कौन कौन से है पहला उस गाँव में निवास करना जहां पर दुष्ट लोग रहते हो या उस घर में रहना जहां पर रोज कलह होता हो वह समझिए कि यह संसार का सबसे बड़ा दुःख है | दूसरा अगर आप अपने घरवाले या प्रजा की खूब सेवा करते हिए लेकिन वह प्रजा या घरवाले यह कह दे कि तुम मेरे लिए क्या करते हो यह भी संसार का सबसे बड़ा दूसरा दुःख होता है | तीसरा दिन भर मेहनत करने के बाद अगर रात्रि में सुन्दर भोजन न मिले तो यह संसार का तीसरी सबसे बड़ी दुःख होती है | चौथा अगर पत्नी क्रोध मुखी हो गयी हो या कलह करने वाली होगी तो यह संसार का चौथा बड़ा दुःख है | पांचवा आप बहुत धनवान है समृद्ध है लेकिन आपके संतान मुर्ख हो गये हो या आपके आज्ञा का पालन नहीं करते है तो समझिए यह संसार का पांचवा दुःख है | छठा अगर मान लीजिए कि विवाह अवस्था में कन्या विधवा हो जाये तो वह संसार का छठवां सबसे बड़ा दुःख होता है क्योंकि जब भी उसके माता पिता उसे देखेंगे तो वह दुःख से पीड़ित हो जाएंगे इसलिए यह संसार का संबसे बड़ा दुःख है | इन् छः प्रकार के दुखो की निर्वित्ती क के लिए ज्योतिष शास्त्र में उपाय बताया गया है कि तुम्हारे कुंडली में कौनसा ग्रह ख़राब है किन ग्रहों के प्रभाव से तुम्हारा कल्याण हो सकता है और किन ग्रहों के प्रभाव के द्वारा तुम्हे स्ख और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है जैसे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्र ग्रह जो है की मन्न का कारक ग्रह है और सूर्य जो है की आत्म कारक ग्रह है यदि चन्द्रमा आपके कुंडली में छटे स्थान, बारहवें स्थान या अष्टम स्थान में बैठ जाये तो वह व्यक्ति का कभी मन्न नहीं लगता है या पाप ग्रहों के साथ बैठ जाये जैसे वृश्चिक राशि में नीच के साथ बैठ जाये तो व्यक्ति कितना भी धनवान क्यों न हो परन्तु उसे कही भी सुख की प्राप्ति नाह होती है रहता है की मै क्या करूँ क्या ना करूं वह प्रति दिन नयी नयी योजनाएँ बनाता है पर उन् योजना को समय पर पुन्न नहीं कर पाता है उसका मैं हमेशा दुःख से पीड़ित रहता है और वह हमेशा सोचता रहता है की मै क्या करूँ क्या ना करूं वह प्रति दिन नयी नयी योजनाएँ बनाता है पर उन् योजना को समय पर पुन्न नहीं कर पाता है रहता है की मै क्या करूँ क्या ना करूं वह प्रति दिन नयी नयी योजनाएँ बनाता है पर उन् योजना को समय पर पुन्न नहीं कर पाता है क्योंकि चन्द्रमा से पीड़ित व्यक्ति का मैं हमेशा अशांत रहता है ठीक उसी प्रकार आत्म कारक ग्रह सूर्य है क्यूंकि सूर्य ग्रहों का राजा है यदि सूर्य कमजोर हो जाये तो व्यक्ति के छाती में परेशानी रहती है व्यक्ति को हमेशा भय बना रहता है और साथ में वह कोई भी कार्य नहीं कर पता इसी प्रकार इन् सभ ग्रहो के दुखों के निवारण करने के लिए भगवान् विराट पुरुष ने कर्मकांडों की रचना की हमारे यजुर्वेदो में कर्मकांड के बारे में बताया गया है की हमारे प्राचीन ऋषियों ने कहा है यदि मनुष्य की कोई मनोकामना हो कि यह मेरा कार्य पुनः हो जाये तो उसकी फुर्ती के लिए और अनिष्ट के निवारण के लिए जो लौकिक उपाय बताए गए है वह वेदों में बताया गया है उससे हे ज्ञान कहते है | उसी प्रकार सुख की प्राप्ति कैसे हो सकती है कर्मकांड के दवारा सुख किसे कहते है तो देखिये संसार में जिस प्रकार छः प्रकार के दुःख होते है उसी प्रकार छः तरह के सुख भी होते है वह कौन कौन से है | पहला प्रतिन धन का आगमन हो यह संसार का सबसे बड़ा सुख है | दूसरा व्यक्ति स्वस्थ रहे निरोगी रहे शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक अर्थात उससे चारो तरफ से कोई पीड़ा ना रहे शरीर से स्वस्थ रहे समाज में उसका समान हो परिवार में कलह न हो सुख स्मृद्ध की प्राप्ति को सभ लोग मिल झूल कर के रहे वही संसार का सबसे बड़ा सुख है | तीसरा पत्नी सुन्दर हो प्रिय बोलने वाली हो और पुत्र आज्ञा करी हो और पुत्र की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए की उसे वह सम्मान के साथ अपने परिवार का पालन पोषण कर सके तो िन्न्न सुखों की प्राप्ति कब होगी तब ज्योतिष शास्त्र के दवारा हमें यह ज्ञान हो जाएगा कि हमारे पुत्र के, पुत्री के, हमारे भाई के , हमारे माता पिता के कुंडली में कौन कौन से ग्रह कहा बैठे है उन् ग्रहों के द्वारा हमें सुखो वह दुखों की प्राप्ति हो रही है उन् ग्रहो का निवारण क्या है ? किस प्रकार सुख की प्राप्ति होगी वह वेदों में कर्मकांड के दवारा हे यानि कर्मो के दवारा हे दुखो को दूर किया जा सकता है इसीलिए ज्योतिष शास्त्र में उपाय बताए गए है की किन शुभ मुहूर्त में कोनसा पूजा करना चाहिए इसके दवारा मनुष्य का कल्याण होगा संसार का कल्याण होगा इसके लिए नव ग्रहों की पूजा बतलाई गयी है क्योंकि मनुष्य जो है की ग्रहो के आधीन है ब्रह्मा ने इन् ग्रहो को वरदान दिया है की जब तुम पुजित हो जाओगे तो पूजा करने वाले को शुभ फल प्रदान करोगे और जब अपूजित रहोगे तो उस मनुष्य के कर्म अनुसार उसे फल दोगे | गृह क्या खाते है की मनुष्य क बुद्धि को ब्र्हस्थ कर देते है और जब बृहसथ कर देते है तो मनुष्य को यह ज्ञान नहीं रहता है किक्या सत्य है और क्या असत्य है क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए जो नहीं कारण योग कर्म है उससे हे मनुष्य करने लगता है | अपने मनन के जिद्द में आ कर के वह उल्टा पुल्टा कर्म करता है और अंत में दुःख को प्राप्त हो जाता है तो इन् असतो के निवारण करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में जो उपाय बतलाए गए है वह उपाए कर्मकाण्ड के दवारा हे किया जा सकता है इसीलिए मनुष्य के जीवन में कर्मकांड बहुत आवश्यक है यज्ञ के दवारा बहुत से कार्य संपन्न होते है | बहुत से लोग यह प्रसन्ना पूछते है की पूजा के दवारा क्या फल मिलता है तो देखिये किसी व्यक्ति को दस दिन या चार दिन जितने दिन भी भूखा रह सकता है उससे खाना मत दीजिये तो वह व्यक्ति भूखा प्यासा हो कर के न चल सकता है न बैठ सकता है पर वह व्यक्ति मर नहीं सकता पर ज्यूही वह खाना खायेगा उसमे तुरंत ही पहले की भांति ऊर्जावान हो जाएगा तो जो खाने के अंदर ऊर्जा होती है वह दिखायी तो नहीं देती परन्तु उसे खाने से जो ऊर्जा या शक्ति मिलती है उसे अपूर्व शक्ति कहते है ठीक उसी प्रकार यज्ञ अनुष्ठान करने से अपूर्व फल की प्राप्ति होती है वह अदृश्य हो कर के मनुष्यो को उनके कर्म रूपी बंधनों को काट देती है फिर उससे सुख की प्राप्ति होती है इसीलिए जप तप यज्ञ व्रत नियम पूर्वक करने से मनुष्यों का कल्याण होता है इसमें कोई संशय नहीं है |