May
31
वास्तु
भगवान विष्णु इस सनसार के वास्तु पुरुष है उन्हीं की कृपा से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है क्योंकि भगवान् विष्णु हेइस्स संसार का पालन हार है | जगत का पालन पोषण करते है ब्रह्मा जी का काम है सृष्टि का उत्पादन करना और भगवान शिव का कार्य है रूद्र रूप में संहार करना और भगवान् विष्णु का कार्य है पालन पोषण करना | देखिये जब हम घर का निर्माण करते है तो उसमे वास्तु का विचार किया जाता है की भूमि की लम्बाई क्या होनी चाहिए क्या चौडाई होनी चाहिए और किस दिशा भूमि ऊंची होनी चाहिए किस दिशा में नीची होनी चाहिए इस विषय पर विचार कर के हे तभी घर का निर्माण किया जाता है | द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण से मिलने के लिए सुदामा जी द्वारिका गए उनका बड़ा परीक्षा हुआ सुदामा का सन्देश लेकर द्वार पाल श्री कृष्ण के पास गये तो बभगवान श्री कृष्णा को जब यह मालूम हुआ की हमारे मित्र सुदामा जी आये हुए ह तो भगवान् स्वयं ही अगवानी करने के लिए अपने राजमहल से निकले दरवाजे पर सबके सामने अपने गले से लगाया सम्मान पूर्वक अपने रथ पे बैठाया और अपने राजमहल ले गए और वह से अपने कक्ष में ले गए सुदामा का बहुत स्वागत किया | परन्तु भगवान् सोच रहे थे की कि सदमा कुछ मांगे लेकिन सुदामा ने कभी भी भगवान् से कुछ नहीं माँगा कहा गया है की भगवान श्री कृष्ण के पास सुदामा जी गए तो उनकी पत्नी वसुंदरा ने कहा कि जब आप अपने मित्र के पास जाये तो अपनी सारी समस्या बतला दीजियेगा वह भी जानती थी की सुदामा जी कभी भी श्री कृष्ण से कुछ नहीं कहेंगे की हम बहुत परेशां है या बहुत गरीब है कैसे रहते है क्या सुख समृद्धि है इसलिए वसुंदरा ने कहा जब आप अपने मित्र से मिलिएगा तो जरूर पूछेंगे की भाभी ने क्या सन्देश भेजा है तो इतना कह दीजिएगा कि हे प्रभु एकादशी का व्रत सभी लोग रहते है द्वादशी को सभी लोग पारण कर लेते है भोजन कर लेते है पर हमलोग के जीवन का द्वादशी तिथि कब आएगी इतना कहियेगा तो भगवान् समझ जाएंगे सुदामा ने जब यह बात बतलाई तो श्री कृष्णा रू दिए क्योंकि एकादशी को सभी लोग व्रत करते है और द्वादशी को भर पेट भोजन करते है सुदामा के लिए द्वादशी तिथि कभी न आयी क्योंकि वह लोग एक समय भोजन करते थे और दुसरे समय भूखे रहते थे कभी कभी दस दिन पंद्रह दिन तक भोजन नसीब नहीं होता था मैने उनकी आर्थिक स्तिथि ख़राब हो गयी थी | जो भी भिक्षा मांगते उसी से अपने परिवार का भरण पोषण करते थे श्री कृष्णा जी जानते थे कि सुदामा जी ब्रह्मा ज्ञानी है वह कभी भी कुछ नहीं मांगेंगे इसलिए जब सुदामा जी विश्राम करने लगे तो रात्रि में भगवान श्री कृष्ण जी ने विश्कर्मा जी का आवाहन किया और बोले हमारे मित्र सुदामा जी के भवन का निर्माण ऐसा कीजिये जैसे मेरा महल है ऐसा महल और भवन का निर्माण करिये हे विश्वकर्मा उस घर में सुख और समृद्धि हो शांति हो कभी द्रदितरा ना आये ना आये इस प्रकार वास्तु के हिसाब से उनका महल तैयार करिये कि हमारे महल के समान उनका भी महल भव्य हो देखिये श्री कृष्णा ने विश्कर्मा जी से कहा की ऐसे महल का निर्माण करिए जिसमें सुख हो समृद्धि हो शांति हो तो घर का निर्माण किस लिए किया जाता है की हम अपने घर में आराम से सो सके किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो परस्पर एक दूसरे से अच्छा सम्बन्ध बना रहे और शांति हो जिस घर में शांति न हो वह घर बेकार है क्युकी शांति बहुत आवश्यक है क्युकी शांति रहेगी तभी मनुष्य का कल्याण होगा विकास होगा और जब शांति नहीं रहेगी अशांति होगी तो आप बड़े से बड़े महल में रहिये वह एक दूसरे को देखकर द्वेष करने वाले हो जलन करने वाले हो तो घर में रहने सेकोई फायदा नहीं होता लोग घर छोड़ के चले जाते है और वह घर भी श्राप देता है की तुम लोग हमारे महल में रहने लायक नहीं हो इसलिए सर्प्रथम जहा भवन का निर्माण करना है उस भूमी पे जाना चाहिए निवासकरने वाले भूई की लम्बाई जो है की उत्तर से दक्षिण होनी चाहिए इस भूमी को चंद्रमुखी भूमि कही जाती है और पूर्व से पक्षिम की लम्बाई वाली घर को हम लोग सूर्य मुखी भवन कहते है सूर्य मुखी भवन पर कुआ तालाब आदि बनाया जाता है और चंद्रमुखी भूमि पर निवास करने के लिए भवन बनाया है और दूसरी बात है उच्च या नीच का भी ध्यान देना चाहिए देखिये चार प्रकार की भूमि होती है पहला दैत्यपृष्ठ भूमि दूसरा कर्म पृष्ट भूमि तीसरा गज पृष्ट भूमि चौथा नाग पृष्ट भूमि आये हम बतलाते है की कर्म पृष्ट भूमि के बारे में जो भूमि पक्ष्चिम से दक्षिण उच्चा हो और उत्तर से पूर्व की और नीचे हो उस भूमि पे घर बनाने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है उस घर में हमेशा शांति बानी रहती है दूसरी भूमि गज पृष्ट भूमि इसका अर्थ है बीच में उच्चा हो और चारो दिशाओ में नीचे हो पहले समय में घर के बीच में चार पांच ईट के ऊपर तुलसी का पौधा लगते थे और चारो दिशा नीचे मालुम होता था उससे गज पृष्ट भूमि कहते है गज मने हठी और मात लक्ष्मी की सवारी हाथी है इसलिए उस घर में सदा माता लक्ष्मी का निवास होता है जिस घर की भूमि गज पृष्ट हो वह कभी द्ररिद्रता नहीं आती है इसलिए हवन निर्माण के समय इस प्रकार के भूमि का चयन करने से उस घर्र में धन धान्य कभी कमी नहीं आती है और कभी द्ररिद्ररता भी नहीं आती है और तीसरा है दैत्य पृष्ट भूमि इस भूमि में उत्तर और पूर्व उच्चा होता है दक्षिण और पक्षिम की दिशा में जुखा होता है उससे दैत्य पृष्ट भुमि कहते है यानि राक्षो की भूमि कहते है उस घर में हमेशा कलह होता रहता है क्योंकि राक्षस हमेशा लड़ते रहते है और उस घर में कभी शांति नहीं होती है उस घर के लोग राक्षस प्रविक्ति के हो जाते है और दूसरे की निंदा करते रहते है की आप ने यह कार्य नहीं किया मैंने यह कार्य किया तोह ऐसे घर में हमेशा कलह होती रहती है और उस घर में द्ररिद्रता आ जाती है | ऐसे में वह एक दूसरे की हत्या तक कर देते है ऐसे घर में कभी भी निवास नहीं करना चाहिए चौथा है नाग पृष्ट भूमि इसका अर्थ है नाग मने सर यानि जो भूमि बीच में झुका हो और चारो तरफ उच्चा हो उससे नाग पृष्ट भूई कहते है उस भूमि में निवास करने से मनुष्य का मैं हमेशा सर्प के विष के समान विषैला हो जाता है जो उस घर में जाएगा या कहेगा वह हमेशा क्रोधी हे रहेगा वह कभी भी किसी से शांति पूर्व व्यवहार नहीं करेगा हमेशा क्रोध में हे बात करेगा आप कभी भी किसी अनजान व्यक्ति के घर चले गए और दरवाजा कटकटाया की है साहब हम आपसे मिलना चाहते है तो वह व्यक्ति पूछेगा कोण हो कहा से आये हो वह इतना सवाल आपसे पूछेगा इतना जेह्रीला भासा का प्रयोग करेगा की आपको खुद गुस्सा के मारे वह से चल देंगे और कहेंगे की यह सब बहुत दोस्त व्यक्ति है इनका नास हो जाना चाहिए तो जिस घर में नाग पृष्ट भूमि हो वह हमेशा कटुता फैलती है एक दूसरे से सम्बन्ध नहीं बनते है हमेशा क्रूड़ी क्रूड बढ़ता है और ऐसे घरो में चूरिया भी बहुत होती है क्यूंकि वह लोग अपने हे घर में चूरिया करने लगते है इसलिए कलह बढ़ जाता है रोग और बीमारी भी बढ़ जाती है हमेशा सारीरिक कष्ट रहता है उनका अदा कमाई बीमारी में खर्च हो जाता है इसलिए नाग पृष्ट भूमि और दैत्य पृष्ट भूमि में कभी निवास नहीं करना चाहिए अगर आपका घर इस प्रकार का है तो सर्वप्रथम उससे संकल्प करवा लीजिये और फिर दक्षिण से पक्षिम के कोने को उच्चा करवा लीजिये अब आगे हम बतलाने जा ररहे है की घर निर्माण किस दिशा से सुरु करे तो सर्व प्रथम अग्नि कोण यानि पूर्व और दक्षिण के कोने से निर्माण शुरू करते हुए दक्षिण पक्षिम की तरफ यानि नैऋत कोण में फिर पक्षिम से उत्तर यानि वायब कोण में हीर उत्तर से पूर्व यानि ईशान कोण में फिर पूर्व से दक्षिण अग्नि कोण में निर्माण करना चाहिए पर दक्षिणा कर्म में भवन बनाना चाहिए इससे भवन जल्दी बनता है और जो लोग उसके विपरीत घर निर्माण कटे है उनका भवन निर्माण में समय लगता है और वह भवन निर्माण नहीं होता है यह वास्तु के बारे में बतलाया गया है |