
Jun
04
मांगलिक दोष एव इसके प्रभाव
वर और वधु के कुंडली में मंगल किन किन अस्थानो पर बैठता है की वह कुंडली मांगलिक मानी जाती है | देखिये ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है की यदि जन्म कुंडली में मंगल लग्न स्थान में, चतुर्थ स्थान में सप्त स्थान में, अस्त स्थान में या दुआदर्श स्थान में हो तो वह कुंडली मांगलिक दोष वाली मानी जाती है | उसी प्रकार चन्द्रमा से विचार किया जाता है चन्द्रमा से मंगल यदि प्रथम स्थान पे हो, चतुर्थ स्थान पे हो सातवे स्थान पे अस्टम में हो या बारवे स्थान पे हो तो भी कुंडली मांगलिक दोष वाली मानी जाती है उसी प्रकार दक्षिण भारत व महाराष्ट्र इत्यादि प्रदेशो में भी शुक्र से मंगल का विचार किया जाता है यदि शुक्र से भी मंगल प्रथम , चतुर्थ, सप्तम, अस्थम व द्वादश स्थान पर हो तो वह भी कुंडली मंगलिक मानी जाती है | परन्तु शुक्र से उत्तर भारत में इसकी मान्यता नहीं है यह दक्षिण भारत में हे विचार किया जाता है और उत्तर भारत में चुकी वह अस्त और त्रि दशा चलती है १८० वर्ष वाली और उत्तर भारत में १२० वर्ष वाली दशा चलती है इसलिए उत्तर भारत में चन्द्रमा और लग्न से विशेष विचार किया जाता है तो आये हमलोग जानते है की इसका परिहार क्या है यदि मान लीजिये वर वधु दोनों के कुंडली में सामान रूप से मंगल बैठा है यदि लड़के की जन्म कुंडली में मंगल जो है प्रथम स्थान में , चतुर्थ स्थान , सप्तम , अस्टम व द्वादश स्थान में बैठा हो तो ठीक वधु के कुंडली में भी उन्ही सब स्थानों पर मंगल बैठा हो तो वह कुंडली मांगलिक दोष से मुक्त हो जाती है तो दोनों का विवाह विधि पूर्वक हो सकता है और वह विवाह शुभ फल प्रदान करता है परन्तु इन् ग्रहो के दवारा मंगल यदि दुईतृया स्थान पे हो तो उस पर भी विचार किया जाता है | पाप ग्रह सूर्य, शनि, मंगल, राहु और केतु यह पांच पाप ग्रह है यदि जन्म कुंडली में यह पाप ग्रह लग्न में बैठे हो तो चतुर्थ स्थान पे बैठे हो केंद्र में बैठे हो तो भी वह कुंडली दोषित हो जाती है यानि मांगलिक दोष वाली हो जाती है | इनका भी विचार किया जाता है मंगल के अलावा यदि मान लीजिये मंगल जो है लग्न स्थान में बैठा हो चतुर्थ स्थान में बैठा हो सप्तम, अष्ठम और द्वादश में भी बैठा हो और इन्ही घरो में सूर्य , शानि, राहु , केतु भी बैठे हो तो उससे मांगलिक दोष को वह पाप ग्रह समाप्त कर देते है | यदि ब्रस्पति या बुद्ध दोनों ग्रह अपने पूर्ण दृष्टि से मंगल को देखते है तो भी मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है | और मंगल, बृहस्पति, और बुद्ध ग्रह के साथ बैठा है तो भी मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है यह परिहार है | आगे भी कहा गया है मेष राशि का मंगल लग्न में हो , दानु राशि का व्य स्थल में , वृश्चिक राशि का चतुर्थ स्थान में , कुम्भ राशि का अस्ष्ट स्थान में , मीन राशि का द्वादश स्थान में हो तो भी मांगलिक दोष नहीं लगता दूसरी बात मंगल अगर कर्क राशि का हो नीच का या बकरी हो या शत्रु क्षेत्री ग्रह हो तो या मिथुन और कन्या राशि पर बैठा हो तो भी वह मांगलिक दोष नहीं लगता यदि मंगल उच्च का हो नीच का हो ऐसा शास्त्रों में कहा गया है की लड़के की जन्म कुंडली में जिस स्थान पर मंगल बैठा हो लड़की के जन्म कुंडली में उन् स्थानों में कोई पाप ग्रह न बैठा हो तो शादी विवाह नई करना चाहिए क्योंकि लड़का या लड़की में से किसी एक का मित्यु हो जाता है इसलिए यहाँ विचार किया जाता है की सप्तम स्थान जो है की पति और पत्नी का होता है और अष्टम स्थान जो है पारिवारिक जीवन जीने के लिए देखा जाता है की इनकी घर में सुख सुविधा क्या है तथा किनका आपस में प्रेम सम्बन्ध कैसा होगा यह अष्टम से विचार किया जाता है सप्तम से दाम्पत्य जीवन देखा जाता है और यह भी देखा जाता है की वह आगे चल कर एक साथ रहेंगे या अलग अलग रहेंगे यह सप्तम स्थान से देखा जाता है व्य स्थान से खर्चा देखा जाता है की पीटीआई पत्नी का आपस में कितना व्य होगा चतुर्थ स्थान से उनके सुख का अनुभव लगाया जाता है क्योंकि चतुर्थ स्थान माता का व सुख का होता है| उससे यह विचार किया जाता है की इस कन्या के साथ विवाह के बाद हमें सुख मिलेगा या नहीं या सम्बन्ध अच्छा रहेगा या नहीं या भूमि भवन आदि की प्राप्ति होगी या नहीं या हमलोग किराये पर रहेंगे या घर में रहेंगे यह सब चौथे स्थान से विचार किया जाता है | और व्य स्थान से खर्च साथ में सारीरिक पीड़ा भी देखा जाता है और दूसरे स्थान से मंगल के बारे विचार किया जाता है क्योंकि दूसरा स्थान धन का होता ही इनके पास धन रहेगा या नहीं विवाह होने के बाद रूपए पैसा होना बहुत जरुरी है क्योंकि रूपया पैसा नहीं होगा तो कोई पूछेगा नहीं | तुलसी दास जी ने कहा है की दरिद्रता के सामान कोई दुःख नहीं है यदि आपके पास पैसा नहीं है तो आपका कभी भी विकास नहीं हो सकता और आप समाज में सामान नई पा सकते है इसलिए धन का होना बहुत जरुरी है और अमृत रुपी वादी सुनने के सामान संसार में कोई सुख नहीं है अर्थात आपका अच्छा मित्र हो गए, आपका पुत्र हो गए, अच्छा परिवार हो गया आपका मंगल करने वाले समजिये जो आपका मंगल करने वाले है वह प्रिय वचन बोलेंगे उसी को साधु कहा जाता है | जो प्रिय वचन बोलने वाले है तो सुन्दर वाणी बोलकर किसे सुख की प्राप्ति नहीं होगी उससे हे संसार का सबसे बड़ा सुख कहा गया है मान लीजिये दोखेबाज़ मित्र हो गए और धोकेबाज़ परिवार वाले तो उनके सामान संसार में कोई दुःख नहीं नहीं है क्योंकि मुख पर प्रिय वचन बोलेंगे और बाद में अप्रिय वचन बोलेंगे यह तो ऐसे है इसलिए जन्म कुंडली के दूसरे स्थान पर धन का विचार किया जाता है | और दूसरे स्थान से धन का सम्बन्ध बनना जैसे मान लीजिये की दूसरे स्थान पर सूर्य बैठा हो मंगल बैठा हो शनि बैठा हो राहु बैठा हो तो जन्म कुंडली में इसको मारकेष भी कहा जाता है और जन्म कुंडली के सप्तम स्थान को भी मारकेष कहा जाता है इसलिए इसको जन्म कुंडली में मारकेष कहा जाता है और अष्टम स्थान से आयु की विचार की जाती है हमारे ज्योतिशो ने कहा है की शादी से पूर्व जन्म कुण्डल मिलाना बहुत जरुरी है दूसरा विचार किया जाता है की हम जो अपने कन्या का शादी करने जा रहे है वह इस शादी से सुखी रहेगी ा दुखी रहेगी ऐसा ही विचार लड़के के लिए किया जाता है इसलिए इन् ग्रहो का विचार किया जाता है जो यह पांच पाप ग्रह है यदि अनिष्ट स्थान पर बैठ गए तो जीवन भर दुःख देंगे तथा इन् अनिष्ट स्थानों पर बैठने से मृत्यु तुल्य पीड़ा होती है और यदि उसी तरह ग्रह वर वधु के कुंडली में बैठे हो तो वह एक दूसरे के दोषो को समाप्त करते है और ऐसे विवाह करने से लाभ प्राप्त होता है |