Jun
18
महा मृतुन्जय मंत्र
महा मृतुन्जय मंत्र
देखिये महा मृतुन्जय मंत्र दो तरीके से जप किया जाता है | पहले तरीके से यह सीधा बोला जाता है जिससे देव भाषा बोला जाता है इसका अर्थ है देवताओ की भाषा में जैसे-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
दूसरा मंत्र जप है जिसमे सम्पुट लगाया जाता है इससे हे जप करने के लिए प्रयोग किया जाता है अतः इससे बीज मंत्र कहते है जैसे –
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
अब इस मंत्र का अर्थ जान लेते है इसका अर्थ है हम स्तुति करते है उस विराट पुरुष की जिसके तीन नेत्र है और जो भगवान् अचे प्रकार से पुस्ताता को बढ़ाने वाले है और जिस तरह तरबूज पाक जाने के बाद अपने बंधन से मुक्त हो जाता है उसी प्रकार जो हम जन्म और मृत्यु के बंधन में फसे हुए है उस बंधन से हमे मुक्त कराये और हम मोक्ष को प्राप्त करे अच्छा बंधन या कष्ट कितने प्रकार के है यह छह प्रकार के है पहला ख़राब गाओं में रहना या उस घर में रहना जहा प्रति दिन कलह हो या जगदा हो क्योंकि जो शांत सोभाव के व्यक्ति है वह हर समय सोचते है की कब कलह समाप्त हो और वह शांति से रह सके उसी चिंता के कारन वह दुःख भोकते है और यह संसार का सबसे बड़ा कष्ट है | दूसरा दुःख यह है की आप अपने घर में सबका खूब सेवा करे और वही घरवाले आपको यह कह दे की आप ने मेरे लिए क्या किया तो यह बात सुन्नते ही वह व्यक्ति दुखी हो जाएगा यह संसार का बड़ा दुःख है अगर यह प्रसन आ गया की आप ने मेरे लिए क्या किया है तो वह कुल नष्ट होने के कगार पर आ गया | तीसरा कष्ट यह है की आप दिन भर मेह्नत करने के बाद घर जाये और आपको अच्छा भोजन न मिले तो यह संसार का तीसरा बड़ा दुःख है | चौथा दुःख यह है कि आपकी पत्नी झगड़ा कररने वाली हो वह आपसे दिनभर झगड़ा करती हो तो यह संसार का चौथा दुःख है | पांचवा दुःख यह है की आप कितना भी धनवान क्यों न हो परन्तु आपके पुत्र मुर्ख है तो आपको हमेसा उनकी चिंता लगी रहेगी की वह आगे कैसे बढ़ेंगे यह संसार का पांचवा दुःख है और छठा दुःख यह है की आपकी पुत्री यौवन अवस्था में विद्वा हो जाये क्योंकि किसी भी माता पिता को उसकी पुत्री का यह दुःख नहीं देखा जाएगा इसलिए यह संसार का छटवा दुःख है इन् सभी दुखो को दूर करने वाले सिर्फ भगवान् शिव है और उनका यह महा मृतुन्जय मंत्र ही इन् कष्टों को दूर करने वाला है इसलिए महा मृतुन्जय मंत्र जप किया जाता है यह कोई बीमारी के लिए नहीं है यह इन् कष्टों को दूर करने वाला है तथा इससे ब्राह्मणो से ही करवाया जाता है इसका एक अर्थ यह भी है यह जीवन के लिए भी है और मृत्यु के लिए भी है क्योंकि मान लीजिये कोई व्यक्ति ज्यादा बीमार है और वह दो चार साल से बिस्तर पर पाड़ा है तो उससे इस जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त करने के लिए इस मंत्र का जप किया जाता है दूसरा कारण यह है की वह अगले जन्म में ऐसा कोई कार्य किया हो जिसके कारण वह कष्ट भोक्ता है और उसकी जीभा भी यह कार्य को नहीं बतला पाती की वह कार्य क्या किया है कलयुग के लिए कहा गया है की हमलोगो का जीवन फूल के सामान है क्योंकि सुबह जब फूल किलता है तो वह भगवान् शिव को चढ़ेगा की रास्ते पर फेक दिया जाएगा यह कोई नहीं जनता ठीक उसी प्रकार हमारा जीवन है जब हम रात्रि में विश्राम करते है तो यह कोई नहीं जनता है की हम सुबह में जिन्दा रहेंगे की मर जाएंगे तो कलयुग की शक्ति है काम क्रोध मध् लोभ यह चारो को लेकर कलयुग प्रदीन घूमता है और मनुष्य का शरीर इतना कोमल है की हम उस कलयुग की चोट को सहन नहीं कर पाते है | अच्छा क्यों नहीं सहन कर पाते है ? मान लीजिये आप कही बैठे है और आपको कोई व्यक्ति फ़ोन कर के बतलाया की आपके पिता को कोई गाली दे रहा है तो मान लीजिये जो गाली दे रहा है वह कही और स्थान पर है और जो आपको सूचना दे रहा है वह और किसी स्थान पर है और आप किसी और स्थान पर है लेकिन जो ही आप सुनेगे की उस व्यक्ति ने मेरे पिता को गाली दे है आप तुरंत ही उग्र हो जाएंगे क्रोधित हो जाएंगे और कहेंगे मै उस व्यक्ति को ढंड दूंगा | उसी प्रकार जैसे आप शब्दो से उग्रह हो जा रहे है ठीक उसी प्रकार कलयुग की जो चार शक्ति काम, क्रोध, मध्, और लोभ व्यक्ति पर सवार हो जाता है और आदमी अपने हे घर में लालची बन बैठता है अपने मित्र व् परिवार वालो से शत्रुत्रा कर लेता है धन के लिए इसलिए कहा गया है की अपने जीवन काल में हरी का नाम इस जीभा पर लेलो क्योंकि अंत समय में जीभा नई हिलती है ठीक उसी प्रकार आप मृत्यु की शय्या पर लेते है आप किसी की बात न सुन्न सकते है न बोल सकते है आप उस समय आपकी जीबा भी नहीं हिल सकती इसलिए जब तक आप जवान है युवा ही आप हरी का जप कर लीजिये अच्छे यग अनुष्ठान को कार लीजिये क्योंकि वृद्धा अवस्था में आप कुछ भी नहीं कर पाएंगे अआप कोई भी धर्म का कार्य करने चलेंगे तो आपका पुत्र कहेगा की आप यह सब फालतू कार्य कर रहे है तो आप पर बार बार क्रोदित होगा इसलिए यह सब कार्य युवा अवस्था में जब तक आप करने योग्य है तब तक कर लेना चाहिए जब तक आपका शरीर साथ दे रहा है तब तक पुनः आदि सब कार्य करना चाहिए और आप अगर यह सब कार्य नहीं करेंगे और अपने पूर्व जन्म में कोई पाप किया है तो यह सब पाप आपको वृद्धा अवस्था में शरीर के द्वारा सहना पड़ता है देव दूत जप तप आपका प्राण नहीं ले लेंगे तब तब आपको भोगना पड़ता है क्योंकि जब आप अपराध करते है तो किसी को नहीं बताते है ठीक उसी प्रकार जब आप कष्ट भोगते है तो आप अपने परिवार वाले से भी नहीं बता पाएंगे की आपको शरीर में क्या कष्ट है ठीक उसी तरह यमदूत भी तब तक प्राण नहीं लेते है जब तक आप पूर्ण रूप से भोगते नहीं क्योंकि यह कहते है की जिस प्रकार तुमने सुख भोगा है उसी प्रकार दुःख भी भोगो इन् सभी कष्टों को भोगने से बचने के लिए भगवान् शिव के महा मृतुन्जय मंत्र का पाठ किया जाता है जिससे भगवान मोक्ष को प्रदान करते है और यमदूत उस प्राण हो ले कर के उस व्यक्ति को मुख्ती दिलाते है दूसरी बात यह भी है आप यदि कष्ट में है दुखी है कोई कार्य या मनोकामना पूर्ण नहीं हो रही है या बीमार है तो उन् सभी मुक्ति के लिए प्राथना करेंगे हे प्रभु आप मुझे इस रोग या कष्ट से मुक्त कराये और मेरी सभी मनोकामना को पूर्ण करे इसलिए महा मृतुन्जय मंत्र का जप किया जाता है यह मंत्र सवा लाख जपना चाहिए व् इसका अनुष्ठान यज्ञ किया जाता है जिससे उस व्यक्ति को रोग और जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है इसमें कोई संशय नहीं है |