Jul
17
प्रसाद का महत्व
प्रसाद का महत्व
बहुत जगहों पूजा पाठ होता है जप तप व्रत होता है और बहुत लोग प्रसाद को लेते है पर बहुत लोग प्रसाद को फेक देते है बहुत लोग देवताओ को मानते है और बहुत लोग देवताओ पर विश्वास नहीं करते है | प्राचीन काल की एक कथा वर्णित है उस कथा का नाम है सत्यनारायण व्रत कथा इस कथा के पांचवे अध्याये में भगवान् विष्णु देवर्षि नारद को उपदेश दे रहे है की प्रसाद का परित्याग करने के कारण एक राजा को इस प्रकार दंड भोगना पड़ा कहा गया है की एक तुंगध्वज नाम के राजा थे जितेन्द्री और धर्मात्मा थे वह राजा एक छत्र प्रजाओं का पालन पोषण करते थे और पुत्र व्रत व्यवहार करते थे राजा के मन में एक बार डेक विकाल उत्त्पन्न हो गया अहंकार रुपी विकार उसे लगा की मेरे समान इस पृथ्वी पर कोई भी राजा हे नहीं है अतः वह राजा जंगल में शिकार खेलने के लिये गया और शिकार के बाद जब वापस लौट रहे थे तभी अपने नगर के समीप एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगा तभी वही कुछ दूरी पर ग्वाल बाल सत्यनारायण की कथा कह रहे थे पूजा समाप्त होने के बाद ग्वाल बाल राजा के समक्ष प्रसाद लेकर गए तो राजा ने प्रसाद का परित्याग कर दिया प्रसाद में तुलसी का पत्ता भी था राजा ने जो ही प्रसाद फेका भगवान् विष्णु नाराज हो गए क्योंकि वह तुलसी का पत्ता था वह पूर्व जन्म में वृंदा नामक पूर्व जन्म में वृंदा नामक स्त्री थी दैत्य राज जलंदर की पत्नी वह वृंदा अपने पुण्य कर्मो के द्वारा हे तुलसी का पौधा बनी और उसे सभी देवताओ में वरदान दिया था की तुलसी का पत्र लक्ष्मी के समान है और उसकी मंजरी वह कस्तुभ मणि के समान भगवान् विष्णु को प्रिय है और कोई भी प्राणी कितना भी पाप किया हो परन्तु मृत्यु के समय उसके मुख में गंगा जल और तुलसी के पत्र दाल लिया जाये तो या वह तुलसी तुलसी कहते हुए अपने प्राण का परित्याग कर दे तो वह प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और हरी प्रिया कह कर जो भगवान् विष्णु तुलसी पत्र चढ़ाते है उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है राजा ने जब प्रसाद फेक दिया तो भगवान् विष्णु नाराज हो कर उसके राज्य को नष्ट कर दिया क्योंकि भगवान् इतनी शक्ति होती है की वह राजा को रंक बना दे और रंक को राजा और उस राजा के सौ पुत्रो को आग में भस्म हो कर मर गए राजा जब अपने नगर में गया तो चारो तरफ यह द्रिश्य देखा तो उसकी बुद्धि खुल गयी और उसे ज्ञान हो गया की मने बहुत बड़ा अपराध किया है अतः फिर वह ग्वाल बाल के पास गए और राज्य पुरोहित को बुला कर फिर से सत्यनारायण भगवान् का पूजा किया उसके बाद भगवान् विष्णु से प्राथना किया की हे प्रभु मेरे सभी अपराधों को क्षमा करिये तभी भगवान् विष्णु प्रसन्न हो कर आकाशवाणी किया हे राजन तुमने अपनेजीवन में पहली बार अपराध किया था मैंने तुम्हारे सारे अपराधों को माफ़ करता हूँ तुम चाहो कोई भी वरदान मानगो तो उस राजा ने कहा हे भगवान् अगर आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे अपना भक्त बना ले मे जब भी इस पृथ्वी पर जन्म लू तो आप की भक्ति करू ऐसा मुझ पर कृपा कीजिये तो भगवान् ने कहा हे राजन तुम्हारे सारे राज्य को और तुम्हारे सारे पुत्रो को मई फिर से जीवित करता हु और पहले की तरह तुम फिर से राज्य करो और हरी भक्ति भी और सत्यनारायण की कथा करो कथा मने होता है ज्ञान जिससे इस पृथ्वी पर मनोवो का कल्याण हो क्योंकि मानव के कल्याण के सामान कोई धर्म नहीं है क्योंकि तुलसी दस जी ने कहा है की दूसरे के कल्याण के समान कोई धर्म नहीं है दूसरे को कष्ट देने के समान कोई अधर्म नहीं है इसलिए ज्ञान के प्रसार से हर व्यक्ति का कल्याण होता है क्योंकि अज्ञानी व्यक्ति किसी का क्या कल्याण करेंगे जो ज्ञानी होगा वह नया नया आविष्कार करेगा जिससे समाज का कल्याण होगा और इसी ज्ञान रुपी कथा से कलयुग में मानव का कल्याण होगा इसलिए प्रसाद का अर्थ होता है प्र मने प्रभु स मने साक्षात् और द मने दर्शन इसलिए प्रसाद ग्रहण करने से जो प्रभु का साक्षात् दर्शन होता है और सुन्दर वाणी सुनने से सुख की प्राप्ति होती है इसलिए सुन्दर वाणी सुनिए और प्रसाद ग्रहण करिये | प्रसाद का मतलब मिठाई से नहीं है सुन्दर सुन्दर वाणी को भी ग्रहण करना भी प्रसाद ग्रहण करना कहते है | इसमें कोई संसय नहीं है |