Jul
24
जन्म कुंडली और प्रसन कुंडली
जन्म कुंडली और प्रसन कुंडली
बहुत से लोग अपना कुंडली दिखते है की हमारे कुंडली में क्या फल है किस प्रकार घटनाये घटेंगी क्या करेंगे कुंडली में सर्वप्रथम ग्रहो का विचार किया जाता है और उसके साथ राशियों का विचार किया जाता है यह राशिया बारह होती है मेष, विष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, विश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन यह बारह राशियों को लग्न भी कहते है मान लीजिये जन्म कुंडली में चन्द्रमा जिस राशि पर बैठता है वही राशि होती है और जन्म समय जो लग्न होता है जैसे जन्म कुंडली के प्रथम भाव में जो अंक होता है जैसे एक या दो तो मेष राशि का या मेष लग्न का होगा दो होगा तो वृष लग्न होगा इस लग्न का राशि का उसके बाद ग्रहो का किस भाव में कोनसा ग्रह बैठे है उसका क्या फल होना चाहिए इनका बहुत विचार किया जाता है| अब प्रसन कुंडली इसमें आपने प्रश्न किया की यह कार्य मेरा कब होगा या कब सफल होगा या हमारा कार्य होगा या नहीं होगा इनमे नकारात्मक प्रसन कभी नहीं किया जाता जैसे आप परीक्षा देने जा रहे है और आप ज्योतिषी से पूछा की में क्या इस परीक्षा में सफल होंगे उसके बाद ज्योतिषी जो है प्रश्न कुंडली बना कर देखते है यदि आपने परीक्षा में सफल होंगे की नहीं तो यहाँ दो प्रसन हो गया तो उस समय उस प्रसन कुंडली का कोई भी ज्योतिषी उत्तर नहीं दे पायेगा क्योंकि कहा गया है की यह जो बारह राशिया है इनका तीन नाम है चर, स्थिर और दुईसभाव यदि चर लग्न में प्रसन किया जाता है जैसे कोई जेल में बंद है और किसी ने पूछा की वह जेल से छूट जाएंगे अगर चर लग्न में प्रसन पूछा होगा तो ज्योतिषी कहेंगे तो हां यह बंधन से मुक्त हो जाएंगे और दूसरा होता है स्थिर लग्न अगर किसी ने स्थिर लग्न में प्रसन किया की यह जेल से छूट जाएंगे तो वह व्यक्ति नहीं छूटेगा क्योंकि जो जहा है वह वही रहेंगे अगर परीक्षा सम्बंधित प्रसन है की हम परीक्षा में सफल हो जाएंगे क्योंकि स्थिर लग्न में शुभ होता है ठीक उसी प्रकार दुइ सभाव होता है उसमे ५०% आपका काम बनेगा और ५०% काम नहीं बनेगा उसमे संसय की स्तिथि बानी रहती है उस समय उस व्यक्ति के म्हणत और कर्म के अनुशार फैला देश करना चाहिए वह क्या करता है किस लायक है तो यह दुइ सभाव राशि हुआ इसलिए कुंडली के बारह भावो का विचार किया जाता है और साथ में ग्रहो का भी विचार किया जाता है यदि आपके जन्म कुंडली में शुभ ग्रह अच्छे केन्द्रो में बैठे हो तो शुभ फल देते है यदि अशुभ ग्रह केन्द्रो में बैठे है तो अशुभ फल देंगे जैसे मान लीजिये राशियों को दो भागो में बाटा गया है पहला सिर स्योदय राशिया और दूसरा पृष्ट उदय राशिया | सिर स्योदय राशियों में मिथुन, सिंह , कन्या , तुला , वृश्चिक तथा कुम्भ राशि का कहा जाता है और पृष्ट उदय राशि में मेष, वृष, कर्क, धनु, और मकर राशियों को कहा जाता है | मान लीजिये किसी ने सिर स्योदय राशि में किसी ने प्रसन किया तो कार्य की सफलता होती है और यदि पृष्ट उदय राशि में प्रसन किया तो वह कार्य सफल नहीं होता है यानि लग्न स्थान में सर्व प्रथम लग्न का विचार किया जाता है उसके अलावा दूसरा देखा जाता है की ग्रहो को मान लीजिये एक , चार , पांच , सात, दस एवं ग्यारवे स्थान में शुभ ग्रह बैठे है तो शुभ फल होगा और मान लीजिये अशुभ ग्रह बैठे है तो अशुभ फल होगा कारण यह है की राशियों के जो स्वामी है जिन जिन भावो में जो रशिया है उन भावो में उन राशियों का स्वामी उस घर में बैठा हो तो शुभ फल देता है और मान लीजिये की उस राशि का स्वामी अन्य घरो में बैठा हो पाप ग्रहो में वह अशुभ फल देंगे कुंडली में प्रथम भाव में दूसरे भाव में चौथे स्थान पे पांचवे में सातवे में दसवे में एवं ग्याहवे स्थान में अगर शुभ राशियों में अशुभ ग्रह बैठे हो तो अधिक पाप न दे कर अलप पाप देते है और जन्म कुंडली के छह, आठ और बारवे स्थान में पाप ग्रह बैठे हो तो अच्छा फल देते है और मान लीजिये बृहस्पति या कोई भी शुभ ग्रह छह , आठ और बारहवे स्थान का स्वामी हो कर के किसी अन्य घर में बैठेगा तो वह अच्छा फल नहीं देगा | ज्योतिष शास्त्र के अनुशार बृहस्पति छटवे स्थान में शत्रु नाशक होता है यानि जिनके जन्म कुंडली में बृहस्पति छटवे स्थान पर होगा उसके सभी शत्रु नास हो जाएंगे और जन्म कुंडली में शनि आठवे स्थान पर हो तो उससे शनि दृघआयु बनाते है | मंगल दसवे स्थान पर बैठा हो और अपनी राशि में बैठा हो तो राजा के समान मान समान प्रतिस्था दिलवाता है और भाग्य बिधाता भी कहा जाता है | और राहु केतु अस्टम भाव का स्वामी हो यानि आठवे भाव का स्वामी के साथ राहु केतु जिस स्थान पर बैठे है वह उस भाव में उल्टा फल देने लगता है | दूसरी बात यह है की गुरु अकेला दूसरा भाव पांचवा भाव और सातवे भाव में होता है तो धन स्त्री पुत्र के लिए अनिष्ट कारक होता है क्योंकि बृहस्पति के साथ कोई पाप ग्रह या अन्य ग्रह बैठा हो तो वह अच्छा फल देता है यदि अकेला हो तो उल्टा फल देता है इसके कारण पति पत्नी पुत्र और परिवार से हमेशा तनाव बना रहता है साथ में धन आवगवम कम हो जाता है उस स्तिथि में अगर बृहस्पति ख़राब हो तो जप, तप व्रत करना चाहिए दूसरी बात जो ग्रह जिस घर के स्वामी माने गए है वह अगर उन उन घरो में अकेला बैठा हो तो वह उल्टा फल देने लगते है वही ग्रह अन्य किसी ग्रह के साथ बैठे हो तो अच्छा फल देने लगते है जन्म कुंडली के अनुसार लग्न से कोई भी पाप ग्रह अगर तीसरे घर में बैठा हो तो अच्छा फल देता है वही अगर कोई शुभ ग्रह तीसरे स्थान पर बैठा है तो वह बुरा फल देने लगता है तीसरा स्थान कुंडली में भाई बंधुओ के लिए देखा जाता है इसलिए जन्म कुंडली में ग्रहो का विचार बहुत जरुरी है अगर शुभ ग्रह केंद्र मे बैठे हो या केंद्र के स्वामी हो कर के शुभ ग्रह जो है अपने मित्र के राशि में बैठे हो उच्च में बैठे हो स्वछेत्री बैठे हो तो जीवन मे अच्छी प्रकार से सफलता होती है | मनुष्य के सभी समस्याओं का समाधान होता है यदि वही शुभ ग्रह के स्वामी हो कर के पाप ग्रहो के साथ पाप घरो में बैठ गए हो तो उल्टा फल देते है जिस्से जीवन में तनाव होने लगता है सप्तम स्थान से विवाह व् पति पत्नी का सम्बन्ध भी देखा जाता है अगर मान लीजिये सप्तम स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्वामी हो कर के और पाप ग्रह के साथ बैठ गया हो या कोई पाप ग्रह अशुभ घर का स्वामी हो कर के सप्तम मे बैठ गया हो तो या कोई पाप ग्रह के साथ बैठ गया हो तो जल्दी उस व्यक्ति का शादी नहीं होता अगर शादी होगी भी तो घर में कलह मचा होगा अतः जीवन मे कोई सुख नहीं रहेगा उस स्तिथि में उन् पाप ग्रहो का जप, तप , व्रत किया जाता है जिस्से वह शुभ फल देने लगे इसी तरह जन्म कुंडली के पांचवे स्थान का विचार किया जाता है | संतान के लिए की पुत्र होगा या पुत्री होगी या किस प्रकार के होंगे और पांचवे स्थान से बुद्धि का भी विचार किया जाता है मेरा बुद्धि और मेरे संतान का बुद्धि कैसे होंगे और कितने विद्यावान होंगे इस तरह जन्म कुंडली से जीवन मे मार्ग दर्शन की प्राप्ति होती है | अमुक व्यक्ति का कौनसा ग्रह ख़राब है कोनसा कार्य करना चाहिए कोनसा कार्य नहीं करना चाहिए यह सब कुंडली के द्वारा विचार किया जाता है इसलिए प्रसन कुंडली में प्रसन्न करते समय विचार करना चाहिए की वह सकरात्मक प्रसन्न करे और प्रसन्न करते समय वह व्यक्ति का समय होता है वह समय हे उस दुःख और सुख का साक्षी होता है जब कोई प्रसन्न करता है तो शुभ समय प्रारम्भ होता है तो ग्रह गोचर उसके अनुकूल हो जाते है उसे अच्छा अच्छा फल प्रदान करते है और वही प्रतिकूल समय प्रसन पूछते है तो वही उसी अशुभ फल प्रदान करते है इसलिए जन्म कुंडली से विचार करना चाहिए की हमारी इस समय किस ग्रह की दशा चल रही है उस ग्रह का क्या दशा है क्या फल है किस ग्रह की अंतर दशा चल रही है किस ग्रह की प्रति अंतर दशा चल रही है उसका क्या फल घटित होगा क्या फल अघटित होगा या सब जन्म कुंडली के द्वारा विचार किया जाता है इन् सभी ग्रहो को ब्रह्मा के द्वारा वरदान प्राप्त है की जब तुम पूजित को जाओगे तो पूजा के द्वारा उस व्यक्ति का अच्छा फल प्रदान करोगे मान लीजिये अगर शनि की दशा ख़राब है तो वह संकल्प लिया जाता है की शानि ग्रह पीड़ा निवारण के लिए मैंने शनि मंत्रो का जप करने जा रहा हूँ | शनि ग्रह मेरे अनुकूल हो जाये मुझे शुभ फल प्रदान करे इस तरह करने से वह शनि देव का जो दुस प्रभाव है वह उस व्यक्ति के ऊपर से धीरे धीरे हटने लगता है उसे शुभ फल प्राप्त होने लगता है इसलिए किसी योग ज्योतिषी से अपना जन्म कुंडली दिखना चाहिए | मान लीजिये आप बहुत धनवां बालवां है अगर आपका ग्रह सही स्तिथि में नहीं है तो वह आपका अपमान करते देर नहीं लगाएगा और परेशान भी करते रहेंगे अगर समय से पूर्व आप जब अच्छे हो संपन्न हो उस समय किसी योग्य ज्योतिषी से उस शुभ अशुभ समय मे किस ग्रह की पूजा करनी चाहिए क्योंकि ज्योतिष ग्रन्थ है वह भगवान् वेद पुरुष का नेत्र है उससे पता लगाया जाता है की इस समय कौन मुहूर्त है उस समय क्या घटना घटेगी शुभ फल या अशुभ फल देगी शुभ स्थान का विचार किया जाता है घर में गृहप्रवेश का समय विचार किया जाता है | मान लीजिये आप बहुत पूजा पाठ करते है आपका ग्रह अशुभ हो गया तो आपको अशुभ फल की प्राप्ति होगी उस समय आप मजबूर हो कर के ज्योतिषियों के पीछे भागते रहेंगे और मान लीजिये आप जब पूजा पाठ नहीं करते है और आपका ग्रह शुभ है तो आपको शुभ फल तो मिलता हे रहेगा परन्तु तब तक जब तक आपका ग्रह शुभ घर में बैठा हो तो इसलिए पहले हे विचार कर के किसी योग्य ज्योतिषी को आपका जन्म कुंडली दिखा कर विचार कर लेना चाहिए की हमारे जीवन में क्या घटना घटने वाली है कोनसा ग्रह उच्च और नीच है तो वह ज्योतिषी आपको पहले हे सावधान कर देंगे की इस समय से इस समय तक आपका समय ख़राब है आप यह पूजा , जप , तप , व्रत कर लीजिये इसके द्वारा आपका भविस्य मे कल्याण होगा और मान लीजिये इधर आपका समय ख़राब चल रहा है और आपको ज्योतिषी ने पूजा पाठ बतला दिया आपके पास धन का आभाव है तो आप और परेशान हो जाएंगे इसलिए पहले हे सब प्रकार से आप धन आदि से सामर्थ हो तो इन् सब का विचार कर लेना चाहिए देखिये जन्म कुंडली में बारह स्थान होते है पहले स्थान से शरीर का विचार किया जाता है रंग रूप रहन सहन का विचार प्रथम स्थान से होता है दूसरे स्थान से धन का विचार किया जाता है की व्यक्ति के पास धन स्थिर रहेगा की नहीं रहेगा या खर्चा होगा या बचेगा यह कुंडली के दूसरे स्थान से विचार किया जाता है तीसरे स्थान से बल पौरुष भाई बहनो का विचार किया जाता है और नौकरी के बारे में भी विचार किया जाता है साथ में हमारे पास दास दासी रहेंगे की नहीं रहेंगे या हमारे भाई बंदु कैसे होंगे या कमजोर रहेंगे या बलवान रहेंगे यह सब तीसरे स्थान से विचार किया जाता है चौथे स्थान से माता के बारे में भूमि, वहन, वाहन और सुख के लिए विचार किया जाता है की हमारे पास भूमि होगा की नहीं होगा गाडी होंगे की नहीं होंगे हमारे माता के साथ सम्बन्ध अच्छा रहेगा की नहीं रहेगा | हमारे जीवन में सुख रहेगा की दुःख रहेगा या सब कुंडली के चौथे स्थान से विचार किया जाता है पांचवे से पुत्र पुत्री संतान बुद्धि और मां इत्यादि का भी विचार किया जाता है साथ में जन्म कुंडली के छटवे स्थान से शत्रु रोग और मातृ कुल मां आदि ही विचार किया जाता है इनके साथ कैसा सम्बन्ध रहेगा जीवन में कितने शत्रु होंगे आप निरोग रहेंगे यह सब छटवे स्थान से देखा जाता है सातवे से पति पत्नी और जीवन का सम्बन्ध देखा जाता है की हमारे जीवन में सुख रहेगा की दुःख रहेगा यह जन्म कुंडली के सातवे स्थान से विचार किया जाता है आठवे स्थान से आयु का विचार किया जाता है और दुःख का भी विचार किया जाता है | नौवे स्थान से भाग्य का की हमारा भाग्य कैसा है भाग्यसाली रहेंगे की दुखी रहेंगे हमारे जीवन में क्या होगा यह सब नौवे स्थान से विचार किया जाता है नौवे स्थान से धर्म के बारे में भी विचार किया जाता है दसवे स्थान से कर्म पर प्रतिष्ठा मान सम्मान कार्य छेत्र के बारे म विचार किया जाता है उसी प्रकार गायरवे स्थान से आये की जैसे कितना इनकम होगा हम कितना धन कमाएंगे यह सब गायरवे स्थान से देखा जाता है बारवे स्थान से व्य आदि का विचार किया जाता है की हमारे घर में अनावस्यक पैसा क्यों खर्च हो रहा है या हमारे पास कितना खर्चा होगा किता बचेगा यह मनुष्य का जीवन का मूल कठिन यही कार्य है और इसी पर मानव जो है विचार करता है तो इन बारह भावो के द्वारा आपके जीवन में सुख दुःख लाभ हानि जीवन के बारे में ज्ञात किया जाता है जन्म कुंडली के द्वारा शुभ ग्रहो की दसा से शुभ फल के द्वारा व्यक्ति के जीवन में अच्छा प्रभाव प्राप्त होता है और अशुभ ग्रहो के प्रभाव से अशुभ फल प्राप्त होती है इसलिए किसी योग्य ज्योतिषी से अपना जन्म कुंडली दिखा कर अपने बारे मी विचार करना चाहिए |