Jul
27
लग्न कुंडली में सूर्य का स्थान
लग्न कुंडली में सूर्य का स्थान
जन्म कुंडली में बारह स्थान होते है उन बारह भावो में सूर्य ग्रह का क्या प्रभाव है और किस भाव में बैठेंगे तो क्या लाभ देंगे और क्या हानि | सर्व प्रथम सूर्य क्या है यह जानते है देखिये सूर्य जो है वह नव ग्रहो का राजा है दूसरी बात सूर्य पूर्व दिशा के स्वामी है तथा वह पुरुष वर्ण के है तथा उनका रंग लाल है सूर्य से पिता और पुत्र के सम्बन्ध का तथा लग्न से सप्तम स्थान में यह बलि माने जाते है चुकी सूर्य जो लग्न से सातवे स्थान में बलि होते है कहा गया है मकर राशि से छह राशि पहले इन्हे चैसठा बलि के रूप में माना जाता है | मकर, कुम्भ, मीन, मेष, विष और मिथुन राशि तक सूर्य जो है चिस्था बलि होते है तथा सूर्य ग्रह के प्रभाव से हमारे शरीर में कोनसे रोग तथा किस प्रकार के कष्ट होते है और की क्या लाभ होता है वह इस प्रकार है देखिये अगर जातक के लग्न में सूर्य ग्रह है तो शारीरिक रोगो में शिर रोग नेत्र रोग और अपचन तथा क्षय रोग का भी विचार क्या जाता है यदि सूर्य लग्न में बैठे हो या छटवे , आठवे और सातवे स्थान से बैठ कर लग्न को देख रहे हो या बारहवे स्थान में बैठे हो तो इस प्रकार के रोग उस जातक को होता है उनसे बुखार , अतिसार, मानसिक रोग और मान ,उपमान का विचार सूर्य से किया जाता है अगर सूर्य सातवे स्थान पर बैठे हो तो पति पत्नी के बीच कलह उत्पन्न हो कर आते है | यदि जातक के दसवे स्थान पर सूर्य बैठ जाए तो व्यक्ति किसी की बात नहीं सुनता वह दिन रात यह सोचता है की बस हमारा काम होना चाहिए | वह अन्य किसी विषय के बारे में नहीं सोचता है आगे धन का भी विचार किया जाता है सूर्य लग्न भाव का कारक ग्रह भी है सूर्य से शनि का बल बढ़ जाता है यदि सूर्य के साथ शनि बैठते है तो शनि का बल बढ़ जाता है ज्योतिष शास्त्र के अनुशार सूर्य और मंगल दसवे स्थान पर एक साथ बैठते है तो वह दिग बलि होते है अर्थात वह दिन में व्यक्ति को विशेष लाभ देते है और सूर्य अपने उच्च राशि में हो यानि मेष राशि में दसम अंश तक हो तो वह दिग्बली होते है यदि मान लीजिये चेस्टा बलि या दिग बलि भारत है तो अच्छा फल देंगे और यदि उनके साथ कोई पाप ग्रह है मंगल पे छोड़कर करके यदि राहु, केतु हो तो नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होता है इसलिए सूर्य का लग्न स्थान में सप्तम, अष्ठम, षष्ठ और द्वादश स्थान में विशेष प्रकार से ध्यान दिया जाता है| यदि यही सूर्य दसवे स्थान में सिंह राशि या उच्च राशि हो या मित्र ग्रह बृहस्पति मीन और धनु के स्वामी होते है तो यदि सूर्य जो है मीन में धनु राशि में स्थिर हो कर दशम स्थान में बैठ जाये | मंगल के सात बैठा हो तो राज्य योग होता है और यदि इसके आलावा शत्रु राशि में सूर्य बैठे है तो पिता पुत्र में विक्षेद करा देते है और दसम स्थान में सूर्य हो तो माता को कष्ट होता है | अगर यही सूर्य चतुर्थ स्थान में बैठते है और शत्रु राशि पर भी बैठते है तो माता और पुत्र में सम्बन्ध विक्षेद हो जाता है और सुख का आभाव हो जाता है इसलिए यदि सूर्य पाप घर में बैठे हो या सूर्य ख़राब हो तो उनके बीज मंत्र का १०८ बार जप करना चाहिए और सूर्य भगवान् को जल देना चाहिए | प्रातः काल तीन बार अर्ग देना चाहिए शास्त्र में कहा गया है की गायत्री मंत्र पढ़ कर तीन बार जल देना जल चाहिए वैसे तो सूर्य भगवान् का संपूर्ण जप २८००० का है कलयुग में इसके बाद हवन करना चाहिए इस प्रकार करने से सूर्य ग्रह की पीड़ा समाप्त होती है | मनुष्य की सभी समस्या जैसे नेत्र ख़राब, सर में दर्द , बुखार , और सूर्य से रीढ़ की हड्डी का भी विचार किया जाता है| साथ में बार बार आप समाज में अपमानित हो रहे है आपका कोई बात नहीं मान रहा है तो आपका सूर्य ग्रह ख़राब है यदि सूर्य की दसा चल रही है तो आपको मानसिक परेशानिया भी होंगी इसलिए सूर्य का जप, तप, व्रत करना चाहिए अगर यह अनुकूल हो गए तो राज पद, प्रतिष्ठा, मान समान और उच्च पद दिलवाते है और सूर्य की कृपा से उस व्यक्ति का सभी दिशाओ में नाम होता है कहा गाया है की सूर्य जिस प्रकार संपूर्ण लोक को प्रकाशित करते है उसी प्रकार उस व्यक्ति का नाम भी प्रकाशित होता है अगर सूर्य ख़राब हो तो इन् उपायों को करिये इसका लाभ उठाये इसमें कोई सनसाय नहीं है |