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मंगल का लग्न कुंडली में स्थान
मंगल का लग्न कुंडली में स्थान
जन्म कुंडली में मंगल ग्रह का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है | मंगल ग्रह दक्षिण दिशा का स्वामी है | पुरुष एवं पीत प्रकृति का है तथा इसका रंग लाल है यह धैर्य तथा प्रराक्रमं का ग्रह माना जाता है| स्वाभाव से यह पाप ग्रह माना जाता है | मंगल तीसरे और छटे स्थान में बलि माना जाता है दूसरे स्थान में बैठता है तो महा वह निष्फल हो जाता है कोई सुबह और अशुभ फल नहीं देता है दसम स्थान पर मंगल दिग्बली हो जाता है और चन्द्रमा के साथ रहने से यह चैसठा बलि कहते है | यह भगनी और भ्राति कारक ग्रह है अर्थात भाई व् बहन का भी विचार इसी से किया जाता है देखिये जन्म कुंडली में मंगल मित्र रशिया शुभ ग्रह के साथ बैठा हो या स्वगृही हो तो अच्छा फल देता है यदि शत्रु राशि में बैठा हो या नीच का हो तो यह बहुत बुरा फल देने लगता है | मंगल की दशा महा दशा तथा अन्तर्दशा में भी व्यक्ति को सुख और दुख की प्राप्ति होती है क्योंकि मंगल अग्नि तत्त्व ग्रह है स्वभाव से क्योंकि यह लाल भी है प्रराक्रमं का भी ग्रह है मान लीजिये आप के जन्म कुंडली में लग्न में मंगल ग्रह बैठ गए तो उसकी द्रिष्टी जो है आठ और सात पर पूर्ण द्रिष्टि पड़ती है यदि वह सप्तम स्थान को पूर्ण द्रिष्टि से देखेगा तो पति पत्नी में अच्छा सम्बन्ध नहीं बनने देगा | अगर जन्म कुंडली में मंगल लग्न स्थान , चतुर्थ स्थान , सप्तम , अस्टम और बाहवे स्थान पर बैठा है तो कुंडली मंगला और मंगली मणि जाती है | मंगला और मंगली का विचार भी मंगल से हे किया जाता है सात में मंगल यदि मित्र ग्रह के सात या मित्र के राशि में दसम घर में बाथ गया हो तो राज्य योग भी बनते है और मंगल यदि पंचम घर में बैठ गया या पंचम का स्वामी हो कर दसम स्थान में बैठा हो या भाग्य स्थान में बैठा हो तो अठाइसवे वर्ष में भाग्य उदय कराता है तथा जिस जातक की कुंडली में पंचम स्थान में या पंचम स्थान का स्वामी हो कर दसम स्थान में बैठा हो तो वह जातक इंजीनियरिंग तथा आईपीएस अधिकारी बनते है और कुछ डॉक्टर भी बनते है जिन्हे सर्जन भी कहते है यदि मंगल चन्द्रमा के साथ बैठा हो और दसम स्थान में बैठा हो तो वह चैसठा बलि हो जाता है अर्थात उससे भी व्यक्ति डॉक्टर बनते है | भाइयो और बहनो का भी विचार किया जाता है किसके भाई कमजोर होंगे या प्रराक्रम शील होंगे धनवान होंगे या रोगी होंगे सब मंगल की अवस्था पर निर्भर करता है | अगर मंगल दुईतृया स्थान पर बैठता है तो जातक धन हीं भी हो सकता है धन बहुत आता है परन्तु धन खर्च हो जाता है धन में स्थिरता नहीं रहती है इसलिए उससे दरिद्रता का बी कारक कहा गया है सात में मंगल अगर तीसरे घर में बैठा हो तो भाई बेहेन में आपस में बहुत मित्रता रहती है और यदि मंगल छटे स्थान में बैठा हो तो शत्रु हन्ता योग और शरीरिक पीड़ा जैसे रक्त से सम्बंदित पीड़ा हो साथ में कमजोरी , घबराहट हो गे यह सब हो सकता है सात में मंगल अगर आठवे घर में बैठा हो तो आयु को कम करता है और शारीरिक और मानसिक रोग भी देता है | स्त्रीयो में जो रक्त की कमी होती है वह मंगल ग्रह के प्रभाव से होता है यदि मंगल कुंडली में ख़राब हो तो रक्त समबन्दित परेशानिया होती है और चमड़े पर चार्म रोग भी इसी के कारण होती है इसलिए मंगल ग्रह का विधि विधान से पूजा करना चाहिए | मंगल यदि सप्तम या लग्न स्थान में बैठ गया तो विवाह जल्दी नहीं होता अगर हो गया तो विवाह टूट जाता है व्यक्ति जीवन में सुखी नहीं रह सकता मंगल ग्रह का बीज मंत्र का १०८ बार जप करना चाहिए साथ में पृथ्वी माता को प्रणाम करके के पूजा करनी चाहिए इससे मंगल ग्रह का दुस प्रभाव कम हो जाता है इसलिए मंगल का प्रभाव जन्म कुंडली में बहुत पड़ता है इन् उपायों को करना चाहिए |
1 Comments
male
28/05/1991
16:06
ahmedabad
gujarat
2012 se berojgar hu. achchhi job ke mouke nirnay samas par na le saka aur job nahi li
1)achchhi job kab milegi?
2)gemstone suggest kare