Aug
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सोमनाथ ज्योतिलिंग महत्व और इतिहास
सोमनाथ ज्योतिलिंग महत्व और इतिहास
सोमनाथ का अर्थ है सोम अर्थात चन्द्रमा नाथ का अर्थ है स्वामी | चन्द्रमा का जो स्वामी है उसका नाम सोमनाथ है यह सोमनाथ ज्योतिलिंग गुजरात के प्रभास क्षेत्र में समुन्द्र तट पर स्तिथ है इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्र देव ने करवाया था | यहाँ पर भगवान् शिव का विग्रह अर्थात तेज़ स्वयंभु शिवलिंग के रूप मे प्रकट हुआ इसलिए इसका नाम सोमनाथ ज्योतिलिंग पड़ा | सोमंथ ज्योतिलिंग क्यों पड़ा इसके बारे में शिव महा पुराण में एक वर्णन है प्रजापति दक्ष की बाइस कन्याये थी प्रथम पुत्री का विवाह उन्होंने भगवान् शिव के साथ करा दिया बाकि शेस कन्याओं के साथ चन्द्रमा के साथ पानी ग्रह संस्कार करवाया चंद्रदेव जो है रोहिणी से बहुत प्रेम करते थे चुकी रोहिणी बहुत सुन्दर थी और जो शेष उनकी पत्निया थी उन् सभी से चन्द्रमा को उतना प्रेम नहीं था तो सभी कन्याये दुखी होक अपने पिता के पास गयी और प्रजापति दक्ष से उन्होंने कहा हे पिता जी हमारे पति चंद्रदेव हमलोगो का सम्मान नहीं करते है प्रजापति दक्ष इस बात को सुन्न कर बहुत क्रोधित हुए और अपने सभी कन्याओं को अपने घर बुलवा लिया परन्तु चन्द्रमा जो है रोहिणी से प्रकांड प्रेम करते थे उनके प्रेम से वसीभूत हो कर के चंद्रदेव जो है अर्धरात्रि के समय सूक्श्म रूप धारण कर के रोहिणी के कमरे में प्रकट हुए रोहिणी अपने पति को देखकर बहुत प्रसन्न हुई दोनों में वार्तालाभ हो ही रहा था उसी वार्तालाभ को सुन्न कर के प्रजापति दक्ष जग गए और वो उसके कक्ष में गए वह पर जा कर उन्होंने देखा की चन्द्रमा और रोहिणी दोनों एक दूसरे से वार्तालाभ कर रहे है यह डेक कर के वह बहुत क्रोधित हुए और चन्द्रमा को उन्होंने श्राप दे दिया और कहा हे चंद्र देव तुम्हे अपने सुंदरता पे बाहर गर्व है अहंकार है इसलिए मे तुम्हे श्राप देता हूँ की आज से तुम क्षय रोगी हो जाओगे और श्याम वर्ण के हो जाओगे क्यूंकि चन्द्रमा शुक्ल वर्ण के थे इसलिए वह काले रंग के हो गए चन्द्रमा श्रापित हो कर के अपने माता पिता के पास गए उनकी माता का नाम था अनसुइया और पिता का नाम था अत्रिऋषि अतः अनसुइया जी ने कहा हे पुत्र तुम गुजरात क्र प्रभास क्षेत्र में जा कर के समुन्द्र के तट पर भगवान् शिव का तप करो | महा मृतुन्जय के मंत्रो से माता की आज्ञा पा कर के चंद्रदेव प्रवास क्षेत्र में जा कर के समुन्द्र तट के किनारे बैठ कर के महा मृतुन्जय के मंत्रो का घोर जप किया और घोर तपस्या किया इस तपस्या के प्रभाव से भगवान् शिव प्रसन्ना हुए और चांदेव को उन्होने साक्षत दर्शन दिया चन्द्रमा ने कहा हे प्रभु यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे इस रोग को दूर करिये भगवान् शिव ने कहा हे चंद्रदेव किसी भी देवी देवता ऋषियों का श्राप क्षय नहीं होता परन्तु मेरे पास जितना अधिकार है उस अधिकार के कारण मई तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ की तुम पंद्रह दिन तक सुन्दर हो जाओगे यानि शुक्ल वर्ण के हो जाओगे स्वस्थ हो जाओगे और फिर पन्द्रह दिन तक तुम काले वर्ण के यानि रोगी हो जाओगे उसी का नाम कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष पड़ा शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की सुंदरता बढ़ जाती है और कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा की सुंदरता कम हो जाती है | भगवान् शिव ने उस रात को दो भागो को विभाजित कर दिया है और सोम मने चन्द्रमा होते है चन्द्रमा ने घोर तपस्या किया था और भगवान् शिव ने उसी प्रवास क्षेत्र में चन्द्रमा के रोगो को दूर किया था स्लिये चन्द्रमा ने उनसे यह आशीर्वाद माँगा हे प्रभु आप यहाँ स्वयंभू ज्योतिलिंग में प्रकट हो जाये और जो बी भक्त गण आपकर दर्शन करेंगे उनके सभी रोगो को आप नास करेंगे और उन्हें आरोग्यता प्रदान करेंगे ऐसा आशीर्वाद दीजिये भगवान् शिव संसार के कल्याण करने के लिए चन्द्रमा की बातो को सुन्न कर प्रसन्न हुए और वह स्वयंभू शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए इसलिए इसका नाम सोमनाथ ज्योतिलिंग पड़ा चन्द्रम ने उस मंदिर का निर्माण करवाया अतः श्रावण महीने के सोमवार के दिन या शुक्रवार के दिन या चतुर्दशी के दिन भगवान् शिव का दर्शन कर के उनका जला अभषेक करते है पूजन पाठ करते है प्रदोष काल में यानि शाम के समय भगवान् शिव जी का पूजन करते है तो उन्हें शारीरिक रोगो से मुक्ति मिलती है और उनको आरोग्यता प्राप्त होता है