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पितृ पक्ष कब से शुरू और पूजा विधि
पितृ पक्ष कब से शुरू और पूजा विधि
इस वर्ष पितृ पक्ष १४ सितम्बर २०१९ दिन शनिवार को पितृ पक्ष प्रारम्भ हो रहा है कहा गया है शास्त्रों में की भाद्रपद के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि से पितरो का दिन प्रारम्भ होता है जो असिन मॉस के कृष्ण पक्ष के अमावस्या तक रहता है | मनु स्मृति के अनुसार मनुष्यो के एक महीना पितरो का एक दिन होता है वो भी रात्रि | पितरो का जो दिन है वह कृष्णा पक्ष कहा जाता है और उनकी जो रात्रि है शुक्ल पक्ष कहा जाता है इसलिए कृष्ण पक्ष में पितरो का श्राद करने का विधान है | शास्त्रों के अनुशार श्रद्धा से हे श्राद शब्द की उत्पत्ति हुई है | श्राद जो है श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए आगे कहा गया है की जो लोग अपनी मृत पृत्र गण की श्रद्धा पूर्वक पूजा करते है उससे श्राद शब्द से जाना जाता है इसे पितृ यज्ञ भी कहते है जो लोग श्रद्धा पूर्वक अपने पितरो को प्रसन्ना करने के लिए पूजा करते है उससे श्राद कहा गया है आगे सपतप ब्राह्मण में आया है की पितृ गण अपने भाग को कैसे ग्रहण करते है तो जब आप श्राद करने के बाद ब्राह्मणो को भोजन करते है तो जो मित्र पितृ गण है वह वायु का रूप धारण कर लेते है और उनकी गति मन से भी तेज़ होती है तो जब आप ब्राह्मणो को बुला कर पितृ पक्ष में भोजन करते है तो आप के पितृ गण वायु रूप धारण कर के उनके पंक्तियों के बीच में आ कर बैठ जाते है और भोजन के रस से तृप्त हो कर श्राद करता को मनोकामना पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते है आगे कहा गया है की श्राद करने से पितृ गण प्रसन्ना हो कर आयु , विद्या, धन, और स्वर्ग मोक्ष को भी प्रदान करते है | महिर्षि जवायु ने कहा है की श्राद करने से पितृ गण प्रसन्ना हो कर के पुत्र प्रदान करते है आयु देते है आरोग्यता देते है तथा धन धान्य भी देते है इसलिए श्राद को श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए बहुत से लोग यह सोचते है की श्राद करने से पिंड दान करने से मरे हुए लोगो को यह सब कैसे प्राप्त होगा | देखिये जो मनुष्य पूर्ण आत्मा होता है वह अपना शरीर त्याग कर के वह देव योनि में चला जाता है तो उनके वंसज जो है श्राद करते है वह अमृत रूप में उन्हें देवलोको में प्राप्त होता है और जो लोग अपने कर्मा अनुशार मनुष्य योनि में आये है तोह उनके वंसज जो श्राद करते है वह अन्य रूप में उन्हें पृथ्वी पे प्राप्त होता है वह मनुष्य को प्राप्त होता है और जो पशु योनि में चले गए है कर्मा अनुशार उन्हें जो है घास के रूप में वह पिंड दान और श्राद का फल प्राप्त होता है अब लोग सोचते है की उन पितृ अलग अलग योनि में चले गए है और हम यहाँ पे श्राद कर रहे है और उन्हें वह फल कैसे प्राप्त होगा तोह हमारे शास्त्रों में कहा गया है की जिस प्रकार गौशाला में हजारो गाये रहती है और गाये के बछड़ो को खोल दिया जाता है परन्तु जब उन्हें भूख लगती है तो अपनी माँ को उन् हजारो गया के बीच में ढूंढ लेता है और जा कर के दूध पीटा है ठीक उसी प्रकार मंत्रो के द्वारा जो पिंड दान किया जाता है उस मंत्र के प्रभाव से पिंड धन करने वाले का जो वह फल अपने पितरो को पहचान कर की उनके पितृ किस योनि मेहै गारा देव योनि में है तोह अमृत रूप में अगर मनुष्य योनि मे है तो भोजन रूप मे अगर पशु योनि में है तोह उन्हें घास के रूप में यदि सर्प योनि में चले गए है तो उन्हें हवा के रूप में प्राप्त होगा इस प्रकार ब्रह्मा के सृष्टि में जिनका जीवोकोपर्जन के लिए और दीर्घ आयु के लिए जीवन को जीने के लिए जो जो सामग्रियां बनायीं गयी है जैसे कुछ अन्य खाते है कुछ पानी पर निर्भर रहते है कोई हवा पे निर्भर रहता है इस प्रकार वह वास्तु उन्हें उसी रूप में प्राप्त होता है इसलिए श्रद्धा पूर्वक श्राद करना चाहिए और जो लोग श्राद नही करते है उन्हें शास्त्रों में कहा गया है की ऐसे लोगो के पितृ गण नाराज़ हो जाते है और नाराज़ हो कर अपने पुत्र पुत्र आदि के रक्त का पान करते है और श्राप देते है की जाओ तुम दुखी हो जाओ उनके खुल में कोई संतानं नहीं होता है उनकी उन्नति नहीं होती है घर में शांति नहीं रहता हमेशा कलह कलेश रहता है हमेशा परेशानी रहती है इसलिए कहा गया है की हजारो पुत्रो में से एक ही पुत्र अच्छा है जो अपने पितरो को तृप्त कर दे इसलिए लोग पुत्र उत्पन्न करते है क्यूंकि कान्ये जो है वह छह पीढ़ियों का उद्धार करती है | परन्तु पुत्र जो है अपनी पूर्वजो का उद्धार करता है अगर आपके पास धन नहीं है आप बहुत गरीब है तो आप श्राद कैसे करेंगे शास्त्रोंही हो में कहा गया है की यदि आपके पास वास्तव में धन नहीं है आप बहुत गरीब है तो किसी एकांत जगह पे जाए जिस दिन आपके पिता की तिथि हो या नदी के किनारे जाये या जंगल में जाए या घर में ही कही एकांत स्थान में और अपने दोनों हाथो को ऊपर कर लीजिये और दक्षिण दिशा के तरफ मुख कर के प्राथना करिये और कहिये की हे पितृ गणो मेरे पास धन नहीं है न श्राद करने के लिए कोई योग वस्तु है इसलिए हे मेरे पृतो आप जिन जिन लोको में हो आप लोगो को में श्रद्धा पूर्वक हाथ जोड़कर प्राथना करता हूँ की आप मेरे पर कृपा करे और मेरे पूजा को प्राप्त करे क्योंकि आपके प्रति मेरे पास सिर्फ श्रद्धा है और इस श्रद्धा से आप तृप्त हो करके अपने लोको में सुखो को भोग करिये जब मेरे पास धन धान्य होगा तब में विधि पूर्वक श्राध्द करूँगा वर्त्तमान में मेरे पास आप लोगो के लिए पूर्ण श्रद्धा है और भक्ति है उस श्रद्धा और भक्ति के द्वारा ही आप लोग मेरे पूजा स्वीकार करे इसके बाद हाथ जोड़कर पृथ्वी को प्रणाम करना चाहिए इससे भी परित्र गण संतुष्ट होते है देखिये आप हजारो रुपये खर्चा कर दीजिये और आपके मैं में श्रद्धा न हो तो वह श्राद को पृत्र गण भी प्राप्त नहीं करते है देखिये देवताओ के पूजन में यदि आपको मंत्र नहीं आ रहा हो तो भी पूजा पाठ करने के बाद आप क्षमा प्राथना बोल देते है या आप उनका आरती करते है तो प्राथना से देवता प्रसन्नहो जाते है परन्तु पितृ गण सब्दो से संतुष्ट होते है यदि आपके मन में श्रद्धा रहेगा और साथ में शुद्ध शुद्ध मंत्रो के द्वारा श्राद्ध किया जाएगा तब ही वह पितृ उस भाव को ग्रहण करेंगे यदि आप में श्रद्धा नहीं होगा और शुद्ध शुद्ध मंत्रो का उपचारां नहीं होगा तो पितृ गण श्राद करता के फल को ग्रहण नहीं करते है और फल भी नहीं देते है इसलिए जो योग ब्राह्मण हो और शुद्ध शुद्ध मंत्रो का उपचारां करने वाला हो उसी से श्राद कर्म करना चाहिए और श्राध्द में नौ ब्राह्मणो को भोजन करने का विधान है यदि नव ब्राह्मण न मिले तो तीन ब्राह्मण और तीन न मिले तो एक ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए वह भी ब्राह्मण शुद्ध होना चाहिए वेद पाठी होना चाहिए और संधया करने वाला होना चाहिए साथ में सुन्दर भी होना चाहिए क्यूंकि आइए ब्राह्मण के पीछे हवा रूप में आपके पितृ गण भी आते है और जब ब्राह्मण संतुष्ट हो तो आपके पितृ गण भी संतुष्ट हो जाते है और आपको आशीर्वाद प्रधान करते है |