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तुलसी पूजा
तुलसी पूजा
इस वर्ष तुलसी विवाह ८ नवंबर २०१९ दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा | तुलसी विवाह कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को मनाया जाता है जिससे प्रमोदिनी एकादशी भी कहते है और विष्णु प्रमोदक उत्सव भी मनाया जाता है और ग्रामीण क्षेत्रो में इसको देव उठणी एकादशी भी कहते है | भगवान् विष्णु चार माह तक सोते है और कार्तिक शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को वह अपने निद्रा से मानते है | उस दिन भक्तगण भगवान् विष्णु की पूजा पाठ करते है और तुलसी विवाह करते है इस विवाह को मानाने के पीछे एक कथा है प्राचीन काल में एक जलंधर नामक राक्षक था इसका जन्म समुन्द्र मंथन से हुआ था दैत्यराज जलंधर जो है ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करके वह शक्तिशाली बन गया था और अपने प्रराक्रम देवलोक, पाताललोक और पृथ्वीलोक तीनो लोको को जीत लिया था उसके पत्नी का नाम था वृंदा यह वही वृंदा है जो अगले जन्म में तुलसी के पौधे के रूप में जन्म लिया था | वृंदा एक पति व्रता स्त्री थी उसके पति व्रत के कारण दैत्यराज जलंधर को कोई भी युद्ध में परास्त नहीं कर सका भगवान् विष्णु भी हार गए और भगवान् शिव भी उससे हार गए एक बार दैत्यराज जलंधर कैलाश पूरी पर आक्रमण किया और भगवान् शिव के साथ उसका गौर युद्ध हुआ भगवान् शिव गबरा गए इसका वध किस प्रकार किया जाये चुकी पति व्रत धर्म के कारण उसकी रक्षा होती थी और वृंदा हगवां विष्णु की परम भक्त थी अतः इंद्रा आदि देवता भगवान् विष्णु के पास गए और कहने लगे हे श्री हरी आप दैत्यराज जलंधर से हमारे प्राणो की रक्षा करिये भगवान् विष्णु ने कहा हे देवताओ लोहा लोहे से कटता है इसलिए अब छल करना पड़ेगा क्यूंकि जब तक उसके पत्नी का पति व्रत धर्म नष्ट नहीं होगा तब तक उसका कोई वध नहीं कर पाएगा अतः भगवान् विष्णु ने दैत्यराज जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के पास गए वृंदा ने देखा की यह मेरे पति है तो उसने उन्हें प्रणाम किया और दोनों हाथो को पकड़ कर कहा हे स्वामी आप कब आये जो हे उसने दोनों हाथो को पकड़ा पर पुरुष के उसी समय भगवान् शिव ने अपने त्रिशूल से दैत्यराज जलंदर का वध कर दिया और उसी समय जलंदर का सर कट करके वृंदा से समूह आ पड़ा वृंदा देख कर गबरा गयी और भगवान् जलंधर के रूप में थे उनको छोड़ कर किनारे हो कर बोली आपको कौन है ? उसी समय भगवान् विष्णु अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए और चुप चाप कड़े हो गए वृंदा ने कहा हे मेरे इष्ट मेरे पूजनीय मई आपकी परम भक्त हूँ परन्तु आप मेरे पति व्रत धर्म को नष्ट कर दिया ऐसा क्यों किया मैंने ऐसा कोई अपराध भी नहीं किया आपकी मई तोह परम भक्त हूँ परन्तु भगवान् विष्णु ने कुछ नहीं बोला उसी समय वृंदा को क्रोध आ गया और उसने कहा जिस प्रकार आप पत्थर के समान कड़े है आप वैसे ही हो जाये जैसे आप कड़े है उसी समय भगवान् विष्णु पत्थर के समान कड़े हो गए तीनो लोको में हाहाकार मच गया ब्रह्मा इत्यादि देवता वृंदा के सामने प्रकट हुए बोले हे देवी यह जो तुम्हारा पति है वह बहुत हे अत्याचारी है इसने अपने पराक्रमण से तीनो लोको को दुःख दे रहा था इसलिए इसका वध करना अनिवार्य हो गया था परन्तु तुम्हारे पति व्रत धर्म के कारण इससे मारना संभव नहीं था इसलिए भगवान् नारायण ने तीनो लोको की रक्षा करने के लिए छल किया इसलिए हे देवी आप के अपना श्राप वापस ले ले स्वयं भगवती लक्ष्मी भी आयी वृंदा के सामने क्यूंकि लक्ष्मी जी का जन्म समुन्द्र मंथन से हुआ था इसलिए जलंधर लक्ष्मी जी को बहन मानता था और जलंधर का जन्म भी समुन्द्र मंथन से हुआ था तोह लक्ष्मी जी ने कहा हे भाभी मई आपके पति की बेहेन हूँ अतः आप मेरे रक्षा करिये मई आपकी शरण में आयी हूँ तोह वृंदा ने कहा मई एक पति व्रता स्त्री हूँ मेरा पति व्रत धर्म नष्ट हो गया अब मुझे कौन अपनाएगा मरने के बाद मुझे अपयश प्राप्त होगा तब भगवान् विष्णु ने कहा हे देवी जब तुम इस शरीर cका त्याग कर दोगी उसके पश्चात तुम तुलसी के रूप पौधे के रूप में इस पृथ्वी पर उत्पन्न हो जाओगी | उस समय तुम्हारा श्राप खाली नहीं जाएगा मई पत्थर का सालिग्राम बन जाऊंगा और सालिग्राम के साथ तुलसी के पौधे का विवाह होगा उस समय में तुम्हे अपना लूंगा जब मई तुम्हे अपना लूंगा तो साड़ी सृष्टि तुम अपना लेगी उन्होंने कहा तुम्हारा गुण तीनो लोको में फ़ैल जाएगा तुम्हारे अंदर बहुत शक्तिया होंगी | तुलसी के पौधे को लक्ष्मी जी के समान पूजनीय माना जाएगा जो तुम्हारी मंजरी होगी वह कौस्तुभ मणि के समान मेरे लिए प्रिय होगी कोई भी मनुष्य हजारो पाप करे परन्तु मरते समय तुलसी तुलसी बोल देगा या मीत व्यक्ति के मुख में तुलसी की पट्टी को दाल दिया जाए गंगा जल के साथ या शुद्ध जल के साथ तोह तुम उससे इस भवसागर से मोक्ष की प्राप्ति करा दोगी तुम्हारे पति व्रत तपस्या का जो फल है वह तुम्हारे पत्तो में विधमान रहेगा उस पुन्हः के प्रभाव से उस मित व्यक्ति भी मोक्ष को प्राप्त कर लेंगे या हरी प्रिय कह करके भक्त गण तुलसी के पत्तो को भगवान् सालिग्राम को चढ़ाएंगे तोह तुम्हारी यश तीनो लोको मई फ़ैल जाएगी तुम सदा सदा के लिए तीनो लोको में पूजनीय हो जाउंगी देवलोक और मानवलोक में तुम्हारी पूजा होगी और कहा तुम संसार का कल्याण करोगी और जो व्यक्ति प्रमोदिनी एकादशी के दिन पूरे विधि विधान से सालिग्राम और तुलसी का विवाह करेंगे उनकी साड़ी मोकामना पूर्ण होगी क्यूंकि उस दिन भगवान् विष्णु को निद्रा से जगाया जाता है | सालिग्राम और तुलसी विवाह विधि सबसे पहले सालिग्राम लेकर और तलसी के पौधे को लेकर जल से आचमन किया जाता है उसके पश्चात पंचामृत चढ़ा जाता है पुनः शुद्ध जल से स्नानो gr कराया जाता है फिर सुन्दर सुन्दर वस्त्र चढ़ाये जाते है और तुलसी जी को साड़ी चढ़ाया जाता है उसके बाद यज्ञोपवीत चढ़ाये जाते है फिर उपवस्त्र चढ़ाया जाता है चन्दन चढ़ाना चाहिए अक्षत की जगह सफेद टिल चढ़ाया जाता है सुन्दर सुन्दर पुष्प माला चढ़ाना चाहिए दूप डीप नैवैद्य दिखा करके आचमन करना चाहिए उसके पश्चात फल चढ़ाना चाहिए ताम्बूल पत्र के साथ लौंग इलाइची चढ़ाना चाहिए साथ में दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए इसमें विशेष गन्ने को चढ़ाया जाता है क्यूंकि कार्तिक अहिना जब प्रारम्भ होता है तो सभी देवता गण पृथ्वी पे आते है और गन्ने के रस के ग्रहण करते है और उससे प्रसन्न हो कर पृथ्वी वासियो को आशीर्वाद देकर चले जाते है इसलिए विष्णु जी के साथ माता तुलसी की पूजा करने से स्तरीया सौभाग्यवती होती है पुरुष लक्ष्मीवान होता है ऐसा शास्त्रों में वर्णित है |