Jan
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विवाह मुहूर्त
विवाह मुहूर्त
मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु परान्त सोलन संस्कार होते है इसमें एक विवाह संस्कार भी होता है जो की मंडप छाजन करके अविवाहिक अग्नि को जला करके और उसकी प्रदिक्षीणा करके जो विवाह की जाती है उसको विवहा संस्कार कहते है यह विवाह आठ प्रकार के होते है | पहला ब्रह्म विवाह दूसरा देव्या विवाह तीसरा अर्श विवाह चौथ प्रजापत विवाह पांचवा असुर विवाह छटवा गंदर्व विवाह सातवा राक्षक विवाह अथवा प्रेत विवाह तो इन् सभी विवाह में सर्वश्रेस्ट विवाह ब्रह्म विवाह होता है तो ब्रह्म विवाह किन किन महीनो में करना चाहिए तथा किस समय करना चाहिए | ज्योतिष शास्त्रों में तथा पुराणों में स्मृति ग्रंथो में इनका वर्णन मिलता है की सूर्य का बहुत प्रभाव रहता है तो यदि सूर्य मिथुन राशि में हो कुम्भ राशि में हो तथा मकर राशि में हो वृश्चिक राशि में हो विष राशि में हो एवं मेष राशि में हो इन् राशियों में विवाह करना शुभ होता है और महीने के बारे में कहा गया है की यदि मिथुन राशि में सूर्य हो और आसाढ़ का महीना हो तो आसाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के दसमी तिथि तक विवाह करना शुभ आता है तथा यदि सूर्य वृश्चिक राशि में हो तो कार्तिक महीने में विवाह करना शुभ होता है यदि सूर्य मकर राशि में हो तो मकर राशिका सूर्य होने से पौष महीना में विवाह करना शुभ होता है तथा यदि मेष का सूर्य हो तो चैत्य महीने में विवाह करना शुभ होता है | कहा गया है की इन् उक्त राशियों में यदि सूर्य हो तो विवाह करने से धन धान्य की प्राप्ति तथा परिवार में सुख की प्राप्ति होती है साथ में परिवार में प्रेम और सौहाद्र बढ़ता है | दूसरी बात किन किन नक्षत्रो में विवाह करना चाहिए तीनो उत्तरा में पहला उत्तरा फाल्गुनी दूसरा उत्तरा साढा तीसरा उत्तरा भाद्रपद तथा रोहिणी , अनुराधा , मृगसिरा , मूल , रेवती , हस्त , मांगा तथा स्वाति इन् नक्षत्रो में विवाह करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है इन्हे नक्षत्रो में विवाह करना चाहिए यदि यह नक्षत्र निवेद हो दोष रहित हो किसी प्रकार का कोई दोष न हो बद्रा इत्यादि का कोई दोष न हो तो विवाह करने से धन धन्या की प्राप्ति होती है साथ में वर वडु का उन्नति होता है अब तिलक के बारे में बताते है इससे वर वर्ण तथा बरक्षा भी कही कही कहते है और कन्या जो वर वर्णन होता है उससे तिलक या बरक्षा कहते है विवाह की विविद नक्षत्रो में कन्या एवं वर का वरन करने से या बरक्षा करने से या छेका करने से शुभ होता है इन् नक्षत्रो के आलावा चार और नक्षत्र है पहला कृतिका दूसरा पूर्वाभाद्रपद तीसरा पूर्वाषाढ़ा चौथ पूर्व फाल्गुनी इन् नक्षत्रो में कन्या एवं वर का वरन करने से दोनों में प्रेम बढ़ता है तथा धन धन्य की वृद्धि होती है | परिवार में एकता बढ़ती है तथा गृह इत्यादि जो मुश्किल होती है वह नष्ट हो जाती है क्यूंकि शुभ समय में किया गया कार्य शुभ फल प्रदान करता है और अशुभ समय में किया गया कार्य अशुभ फल प्रदान करता है | इन् नक्षत्रो के अतरिक्त यदि किसी अन्य नक्षत्र में वर वडु का विवाह होता है तो या कन्या की वरन या वर का वरन किया जाता है तो पति पत्नी में आपस में कलह मचता है देवेश उत्पन्न होता है या दरिद्रता बढ़ता है और उस घर में चारो तरफ अशांति हे अशांति फ़ैल जाती है इसलिए शास्त्रो के अनुशार बताये गए नक्षत्रो में हे विवाह करना चाहिए जिससे वंश की वृद्धि भी होती है साथ में सुख समृद्धि बनी रहती है |