Jun
22
महामृत्युंजय मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र क्या है ?
महापूज्य मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न करने वाला मंत्र हैयह मंत्र जप संजीवनी मंत्र कहा जाता है मंत्र के जप से मनुष्य की शारीरिक मानसिक सब पीड़ा दूर हो जाते हैंमंत्र दो प्रकार के होते हैं – 1.) मृत्य संजीवनी मंत्र2.) साधारण पूज्य मंत्र मृत्य संजीवनी मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
साधारण मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
महामृत्युंजय मंत्र अर्थ
ॐ त्र्यम्बकं – त्रिनेत्र वाले कर्मकारक भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है मनुष्य के कर्म के आधार पर फल को देने वाले कारक हैं यजामहे – हम सम्मान करते हैं, और उन्हे पूजते हैं सुगन्धिं – मीठे महक वाले भगवान शिव, सुगंधित (कर्मकारक) पुष्टि – फलने फूलने वाली स्थिति वर्धनम् – वृद्धि करने वाले उर्वारुकमिव – ककड़ी( जिस प्रकर ककड़ी अपने तने से पक जाने के बाद अलग हो जाती है उसी प्रकार हमारे जीवन को जन्म मृत्यु के बंधन से मोक्ष या अमरता प्रदान करे) बन्धनान् – जन्म रूपी बंधन से मुक्ति करने वाले मृत्यो – मृत्यु से र्मुक्षीय – हमे मुक्त करे देमा – न अमृतात – अमरता को प्रदान करने वाले
पौराणिक कथा
महामृत्युंजय मंत्र की रचना करने वाले मार्कंडेय ऋषि तपस्वी और उग्र मृकंद ऋषि के पुत्र थे। बहुत तपस्या के बाद मृकुंड ऋषि को एक पुत्र का जन्म हुआ लेकिन उस बालक के लक्षण को देखकर ज्योतिषियों ने उसकी आयु केवल 12 वर्ष बताई।जब मार्कंडेय 5-7 साल के थे, तब उनके पिता ने उन्हें उनकी कम उम्र के बारे में बताया। साथ ही उन्होंने शिव की पूजा का मंत्र देते हुए कहा कि शिव आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर सकते हैं।तब बालक मार्कंडेय शिव मंदिर में बैठकर शिव की पूजा करने लगे। जब मार्कंडेय की मृत्यु का दिन आया, तो यमराज के दूत उसे लेने आए। लेकिन मन्त्र के प्रभाव से बालक के पास जाने का साहस नहीं जुटा पाया। उन्होंने जाकर यमराज को सूचना दी। इस पर यमराज खुद मार्कंडेय को लेने आए। यमराज की रक्तरंजित आँखें, भयानक रूप, भैंस की सवारी और हाथ में पाश देखकर बालक मार्कंडेय डर गए और उन्होंने रोते हुए शिवलिंग को गले से लगा लिया। उसी समय स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने क्रोधित होकर यमराज से कहा- तुमने मेरी शरण में बैठे भक्त को दंड देने का विचार भी कैसे किया? इस पर यमराज ने कहा- हे प्रभु, मुझे खेद है। और वहां से चला गया। भगवान शिव अपने भक्त को अमरता का वरदान दे कर वहां से चले गए इस कथा का वर्णन मार्कण्डेय पुराण में मिलता है।
ये मंत्र जप कहा से लिया गया है ?
मृत्युंजय मंत्र सबसे पुराने वैदिक साहित्य, ऋग्वेद में पाया जाता है
मंत्र जप का लाभ क्या है ?
मंत्र का जप करने से मनुष्य के जन्म कुंडली में मारक दशा की स्थिति को शांत करता हैमंत्र के जप से मनुष्य की शारीरिक मानसिक सब पीड़ा दूर हो जाते हैंभगवान शिव से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है
परिस्थिति के अनुसार मंत्र का जप
भय से छुटकारा पाने के लिए 11,000 मंत्र का जाप करना चाहिएरोग आदि से छुटकारा पाने के लिए 21,000 मंत्र का जप करना चाहिएपुत्र की प्राप्ति के लिए असाध्य रोग के निवारण के लिए 1,25,000 जप करना चाहिएमृत्युंजय मंत्र परिस्थिति के अनुसार कभी भी आप करवा सकते हैं