Jul
10
भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा
पूर्व भारतीय उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी,शंख क्षेत्र,श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला–भूमि है। उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है।
ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है। पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है। इसमें भाग लेने के लिए, इसके दर्शन लाभ के लिए हज़ारों, लाखों की संख्या में बाल, वृद्ध, युवा, नारी देश के सुदूर प्रांतों से आते हैं।जब की रथ यात्रा के पीछे का पौराणिक मत यह है की स्नान पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगननाथ को भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप मे ले जाया जाता है। और १०८ कलशो से उनका शाही स्नान कराया जाता है और उस स्न्नान से प्रभु बीमार हो जाते है उन्हे ज्वर आ जाता है तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष मे रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते है।
इस 15 दिनों की अवधी मे महाप्रभु को मन्दिर के प्रमुख सेवको और वैद्यो के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर मे महाप्रभु के प्रतिनिध अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थापित की जाते है। 15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते है। और भक्तो को दर्शन देते है। जिसे नवयौवन नेत्र उत्सव भी कहते है। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्रीकृष्ण और बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते है। और रथ पर विराजमान होकर नगर घूमने नीकलते है। और इसे जगरन्नाथ रथ यात्रा कहते है।