Jul
13
देवशयनी एकादशी का महत्व
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते है। इस दिन से भगवान विष्णु का शयन काल प्रारम्भ हो जाता है। इसलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते है। पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इस इसदिन से चार मासपर्यन्त (चातुर्मास )पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं।इसी प्रयोजन से इस दिन को ‘देवशयनी’तथा कार्तिकशुक्ल एकादशी को प्रबोधनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार ,विवाह ,दीक्षाग्रहण ,यज्ञ ,ग्रहप्रवेश ,गोदान आदि जितने भी शुभ कार्य है वे सभी वर्जित होते हैं।
देवशयनी एकादशी का महत्व
इस एकादशी को सौभाग्य की एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं।पद्म पुराण का दावा है कि इस दिन उपवास या उपवास करने से जानबूझकर या अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती हैं।
इस दिन पूरे मन और नियम से महीलाओं की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं।
शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास में 16 संस्कारों का आदेश नहीं है। इस अवधि में पूजा ,अनुष्ठान ,घर या कार्यालय की मरम्मत ,गृहप्रवेश ,ऑटोमोबाइल खरीद और आभूषण की खरीद की जा सकती है।
व्रतविधि
इस दिन प्रातःकाल उठें ।इसके बाद घर की साफ -सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो और स्न्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने ,चाँदी ,तांबा अथवा पीतल की मूर्ती की स्थापना करें। तत्प्श्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें इसके बाद भगवान विष्णु को पीताम्बर आदि से विभूषित करें। तत्पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए। इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें। अंत में श्री विष्णु जी को शयन कराना चाहिए।
व्रतफल
ब्रम्ह वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेस माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामना पूर्ण होती है।