Jul
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कोकिला व्रत का महत्व और कथा
कोकिला व्रत–आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से लेकर सावन मास की पूर्णिमा तक कोकिला व्रत रखने का विधान है। इस बार यह शुभ तिथि 23 जुलाई दिन शुक्रवार को है। इस व्रत में आदिशक्ती माँ भगवती की कोयल रूप में पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने वाली महिलाओ को सौभाग्य और संपदा की प्राप्ति होती है। ज्यादातर यह पर्व दक्षिण भारत में मनाया जाता है।
कोकिला व्रत का महत्व
कोकिला व्रत की ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी सुखों की प्राप्ति सम्भव होती है। यह व्रत दांपत्य जीवन को खुशहाल होने का वरदान प्रदान करता है। इस व्रत के द्वारा मन के अनुरूप शुभ फलों की प्राप्ति होती है। शादी में आ रही किसी भी प्रकार की दिक्कत हो तो इस व्रत का पालन करने से विवाह का सुख प्राप्त होता है। यह व्रत योग्य वर की प्राप्ति कराने में सहायक बनता है।
कोकिला व्रत की कथा
कोकिला व्रत की कहानी का संबंध शिव पुराण में प्राप्त होता है। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष के घर देवी सती का जन्म होता है। दक्ष विष्णु भगवान का भक्त था और भगवान शिव से द्वेष रखता था। जब बात सती के विवाह की हुई। तब राजा दक्ष कभी भी सती का संबंध भगवान शिव से जोड़ना नहीं चाहते थे। राजा दक्ष के मना करने पर भी सती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया। पुत्री सती के इस कार्य से दक्ष इतना क्रोधित होते हैं कि वह अपनी पुत्री से संबंध तोड़ लेते हैं। कुछ समय बाद राजा दक्ष शिव अपमान करने हेतु एक महायज्ञ का आयोजन करते हैं। उसमें दक्ष अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं करता है। जब देवी सती को इस बात का पता चलता है तो वह उस यज्ञ में जाने के लिए कहती है। और भगवान शिव उन्हें इस बात के लिए आज्ञा नहीं देते हैं पर देवी सती के जिद के आगे हार जाते है और उन्हें जाने देते हैं। सती यज्ञ पर जाकर जब अपने पति का स्थान नही पाती तो अपने पिता दक्ष से इसके बारे में पूछती हैं लेकिन दक्ष अपनी पुत्री सती और शिव का अपमान करते हैं। शिव के प्रति अपमान करते हैं। शिव के प्रति अपमान जनक शब्दो को वह सहन नहीं कर पाती हैं और उस यज्ञ के हवन कुंड में अपनी देह का त्याग कर देती हैं। भगवान शिव को जब पता चलता है तो वह दक्ष और उसके यज्ञ को नष्ट कर देते हैं। शिव सती के वियोग को सह नही पाते हैं और उन्हें इस बात पर हजारो वर्षो तक कोयल बनने का शाप देते हैं। तथा देवी सती कोयल बनकर हजारों वर्षो तक भगवान शिव को पुनः पाने के लिए तपस्या करती हैं। उनकी तपस्या का फल उन्हें पार्वती रूप में शिव की प्राप्ति के रूप में मिलता है। तब से कोकिला व्रत की महत्ता स्थापित होती है।
कोकिला व्रत की महिमा
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन रखा गया यह व्रत सम्पूर्ण सावन में आने वाले व्रतों का आरम्भ होता है। इस व्रत में देवी के स्वरूप कोयल रूप में पूजा जाता है कि माता सती ने कोयल रूप में भगवान शिव को पाने के लिए वर्षो तक कठोर तपस्या के शुभ फल स्वरुप उन्हें पार्वती रूप मिला और जीवनसाथी रूप में भगवान शिव कि प्राप्ति होती है।