
Jul
15
कर्क संक्रांति का महत्व और लाभ
सूर्य का एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। ये वो वक्त है ,जो दान पुण्य के लिए उत्तम माना जाता माना जाता है। मान्यता है कि इस संक्रांति काल में दान पुण्य का सबसे अधिक फल प्राप्त होता है। अब बात करते है कर्क संक्रांति की। इसे सावन या श्रावण संक्रांति भी कहते है। जाहिर तौर पर स्पस्ष्ट है कि ये शिव भगवान की आराधना का महीना होता है। इसमें सूर्य का एक राशि से दुसरी राशि में प्रवेश होना श्रावण संक्रान्ति कहलाता है। सीधे तौर पर समझे तो सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश ही कर्क संक्रान्ति होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे 6 महीने के उत्तरायण काल का अंत माना जाता है। साथ ही इस दिन से दक्षिणायन की शुरुआत होती है ,जो मकर संक्रन्ती में समाप्त होता है।
तिथि तथा समय –कर्क संक्रान्ति इस वर्ष 16 जुलाई दिन शुक्रवार को हैं।
संक्रान्ति का महत्व
अगर देखा जाये तो संक्रांति का संबन्ध कृषि ,प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी है। सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर जाना जाता है।,इसीलिय संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है। शास्त्रों में सूर्य देवता को भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा माना गया है। ऋतु परिवर्तन और जलवायु में कुछ मत्वपूर्ण बदलाव इनकी स्थिति के अनुसार होता है। न केवल ऋतु में बदलाव बल्कि धरती जो अन्न पैदा करती है और जिससे जीव समुदाय का भरण -पोषण होता है ,यह सब सूर्य के कारण ही सम्पन्न हो पाता है।
संक्रांति के दिन पूजा -अर्चना करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बाटा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते है ,संक्रांति एक शुभ दिन होता है। कर्क संक्रांति पर सूर्य देव की उपासना करना अत्यधिक कल्याणकारी माना जाता है।
संक्रांति का लाभ
मान्यता है कि कर्क संक्रांति पर कोई भी नए कार्य के प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। कर्क संक्रांति पर गरीबो को कपड़े और खाने का दान करना चाहिए। इस दिन तेल के दान करना पितरो की आत्मा की शांति के लिए शुभ माना जाता है। इसके अलावा कर्क संक्रांति पर छोटी बच्ची को नारंगी रंग के कपड़े या बच्चे को हरे रंग के फल दान करने का विशेष महत्व है।