Jul
17
गुरु पूर्णिमा पूजा का महत्व और महत्वपूर्ण तिथि
गुरू -पूर्णिमा
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु -संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते है। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी महत्व पूर्ण होते है।इस महीने में न अधिक सर्दी और न अधिक गर्मी पड़ती है। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है ,वैसे ही गुरु -चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदि गुरु भी कहा जाता है। और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। और इस साल गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई 2021 को मनाया जा रहा है। इस दिन सभी शिष्य अपने -अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेते हैं और उन्होंने अब तक जो कुछ भी दिया है उसके लिए धन्यवाद करते हैं।
गुरु पूर्णिमा पूजा का महत्व
गुरु के बिना एक शिष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं है। रामायण से लेकर महाभारत तक गुरु का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च रहा है। गुरु की महत्ता को देखते हुए ही महान संत कबीरदास जी ने लिखा है -“गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये ,बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।” यानि एक गुरु का स्थान भगवान से भी कई गुना ज्यादा बड़ा होता है।गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
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